गरूड़ को क्यों हुआ श्रीराम के भगवान होने पर शक

रामायण हिंदू धर्म का प्रमुख ग्रंथ, जिसके बारे में ज्यादातर लोग जानते ही हैं। हिंदू धर्म के इस ग्रंथ के रचयिता तुलीसदास जी है। लेकिन क्या आप जानते हैं तुलसीदास जी से पहले ही किसी ने पूरी राम कथा का प्रचार कर दिया था। जी हां, आज हम आपको बताएंगे कि तुलसीदास के अलावा कौन था जिसने रामायण की गाथा का प्रचार किया था। पौराणिक कथाओं के अनुसार श्रीराम की कथा यानि रामायण भगवान श्री शंकर ने माता पार्वती जी को सुनाई थी। जिस समय वे माता पार्वती को यह कथा सुना रहे थे, उस वक्त वहां एक कौआ, जिसने कथा सुन ली। कहते हैं कि उसी कौवे का पुनर्जन्म कागभुशुण्डि के रूप में हुआ। जिन्हें पूर्व जन्म में भगवान शंकर के मुख से सुनी रामकथा पूरी याद थी।

मान्यता के अनुसार उन्होंने यह कथा अपने शिष्यों को सुनाई। इस तरह भोलेनाथ के मुख से निकली श्रीराम की जीवनी पर आधारित यह पवित्र कथा ‘अध्यात्म रामायण’ के नाम से विख्यात हुई। कागभुशुण्डि को पूर्व जन्म में भगवान शंकर के मुख से सुनी वह रामकथा पूरी की पूरी याद थी। उन्होंने यह कथा अपने शिष्यों को सुनाई। इस प्रकार रामकथा का प्रचार-प्रसार हुआ। भगवान शंकर के मुख से निकली श्रीराम की यह पवित्र कथा ‘अध्यात्म रामायण’ के नाम से विख्यात है।

अब सवाल यह आता है कि आख़िर का कागभुशुण्डि थे कौन और यह कौआ कैसे बने। आईए आज आपको बताते हैं कि कागभुशुण्डि का रामायण के गाथा से रिश्ता लोमश ऋषि परम तपस्वी तथा विद्वान थे। इन्हें पुराणों में अमर माना गया है। लोमश ऋषि बड़े-बड़े रोमों वाले थे। इन्होंने भगवान शिव से यह वरदान पाया था कि एक कल्प के बाद मेरा एक रोम गिरे और इस प्रकार जब मेरे शरीर के सारे के सारे रोम गिर जाऐं, तब मेरी मृत्यु हो।

कहा जाता है कि जब रावण के पुत्र मेघनाथ ने श्रीराम से युद्ध करते हुए उन्हें नागपाश से बांध दिया था, तब देवर्षि नारद के कहने पर गिद्धराज गरूड़ ने नागपाश के सभी नागों को खाकर श्रीराम को नागपाश के बंधन से मुक्त कर दिया था।

भगवान राम के इस तरह नागपाश में बंध जाने पर गरूड़ को उनके भगवान होने पर को संदेह हो गया। गरूड़ के संदेह को दूर करने के लिए देवर्षि नारद ने उन्हें ब्रह्माजी के पास भेजा। लेकिन ब्रह्माजी ने उनको शंकर जी के पास भेज दिया और भगवान शंकर ने भी गरूड़ को उनका संदेह मिटाने के लिए कागभुशुण्डि जी के पास भेज दिया। अंत में कागभुशुण्डि जी ने राम के चरित्र की पवित्र कथा सुनाकर गरूड़ के इस संदेह को दूर किया।

कहते हैं कि वैदिक साहित्य के बाद जो रामकथाएं लिखी गईं, उनमें वाल्मीकि रामायण सर्वोपरि है। वाल्मीकि श्रीराम के समकालीन थे और उन्होंने रामायण तब लिखी, जब रावण-वध के बाद श्रीराम का राज्याभिषेक हो चुका था। एक दिन वे वन में ऋषि भारद्वाज के साथ घूम रहे थे और उन्होंने एक व्याघ द्वारा क्रौंच पक्षी को मारे जाने की दिल दुखाने वाली घटना देखी और तभी उनके मन से एक श्लोक फूट पड़ा। कहते हैं इसी घटना से उन्हें रामायण लिखने की प्रेरणा मिली।

यह इसी कल्प की कथा है और यही प्रामाणिक है। वाल्मीकि जी ने राम से संबंधित घटनाचक्र को अपने जीवनकाल में स्वयं देखा या सुना था इसलिए उनकी रामायण सत्य के काफी निकट है, लेकिन उनकी रामायण के सिर्फ 6 ही कांड थे। उत्तरकांड को बौद्धकाल में जोड़ा गया। उत्तरकांड क्यों नहीं लिखा वाल्मीकि ने? या उत्तरकांड क्यों जोड़ा गया, यह सवाल अभी भी खोजा जाता है।

अद्भुत रामायण संस्कृत भाषा में रचित 27 सर्गों का काव्य-विशेष है। कहा जाता है कि इस ग्रंथ के प्रणेता भी वाल्मीकि थे। किंतु शोधकर्ताओं के अनुसार इसकी भाषा और रचना से लगता है कि किसी बहुत परवर्ती कवि ने इसका प्रणयन किया है अर्थात अब यह वाल्मीकि कृत नहीं रही। तो क्या वाल्मीकि यह चाहते थे कि मेरी रामायण में विवादित विषय न हो, क्योंकि वे श्रीराम को एक मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में ही स्थापित करना चाहते थे?

पौराणिक कथाओं के अनुसार लोमश ऋषि के शाप के चलते कागभुशुण्डि कौवा बन गए थे। लोमश ऋषि ने शाप से मु‍क्त होने के लिए उन्हें राम मंत्र और इच्छामृत्यु का वरदान दिया गया। कौवे के रूप में ही उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन व्यतीत किया। वाल्मीकि से पहले ही कागभुशुण्डि ने रामायण गिद्धराज गरूड़ को सुना दी थी।

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