हिंदू पंचाग के अनुसार मार्गशीर्ष माह की शुक्ल पक्ष पंचमी को विवाह पंचमी मनाई जाती है। मान्यता है कि पंचमी के दिन भगवान राम और माता सीता का विवाह हुआ था, इसलिए इस दिन को भगवान राम के विवाहोत्सव के रुप में मनाया जाता है। वैसे तो मां सीता के बारे में जितना भी लिखा जाए वो कम ही है लेकिन वाल्मीकि रामायण और तुलसीदास की रामचरित मानस में उनके अलग-अलग वर्णन हैं लेकिन दोनों ही जगह मां सीता एक आदर्श बेटी और पतिव्रता नारी थीं, जिन्होंने अपना हर धर्म शिद्दत से निभाया है। वाल्मीकि रामायण के मुताबिक मां सीता और भगवान राम की शादी के वक्त सीता की उम्र 6 साल थी, वो शादी के बाद 12 साल तक भगवान राम के साथ अयोध्या में रहीं। वनवास जाते वक्त मां सीता की उम्र 18 साल थी, उन्होंने अपना पत्नी धर्म निभाने के लिए ही राम के साथ वन जाने का फैसला किया था।
रामचरित मानस में सीता स्वयंवर का उल्लेख लेकिन वाल्मीकि रामायण में नहीं है। बाल्मिकी ने लिखा है कि राम गुरू विश्वामित्र के साथ जनकपुरी गये थे जहां बातों-बातों में उन्होंने शिवजी का धनुष तोड़ दिया जिसके बाद जनक ने सीता का विवाह उनसे कर दिया था क्योंकि उन्होंने प्रण किया था कि वो उसी से सीता की शादी करेंगे जो धनुष तोड़ेगा। जबकि रामचरित मानस में सीता के स्वयंवर पर काफी कुछ लिखा है। वाल्मीकि के अनुसार रावण ने सीता का हरण अपने रथ से किया था। रावण का यह दिव्य रथ सोने का बना था जबकि तुलसीदास ने लिखा है कि सीता को हरण के बाद रावण उन्हें पुष्पक विमान से लंका ले गया था।
रामायण में शुक्ल पक्ष की पंचमी का जिक्र नहीं तुलसीदास ने लिखा है कि मार्गशीर्ष मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी को सीता और राम की शादी हुई थी लेकिन रामायण में ऐसा नहीं वर्णन नहीं है, वाल्मीकि रामायण में लिखा है कि सीताहरण के बाद इंद्र ने ऐसी खीर बनाकर सीता को खिलाई जिसके बाद सीता जब तक लंका में रहीं भूख-प्यास नहीं लगी जबकि यह सब कुछ तुलसी दास ने इस विषय पर कुछ नहीं लिखा है।