कुछ इस तरह थी भगवान राम और हनुमान जी की पहली मुलाकात

भगवान हनुमान को पूरे संसार में ‘रामभक्त हनुमान’ के नाम से जाना जाता है और उनकी भक्ति और मिलन की कहानियों को हर कोई पढ़ना चाहता है। आज हम आपको प्रभु राम और भगवान हनुमान की पहली मुलाकात के बारे में जानकारी देने वाले हैं।

पहली बार भगवान हनुमान अपने प्रभु राम से कब मिले, कैसे मिले और कहां मिले? इस संबंध में कई सारी पौराणिक कहानियां प्रचलित हैं, लेकिन हम आपको बता दें महर्षि वाल्मीकि द्वारा ‘रामायण’ ग्रंथ में दिया गया श्रीराम-हनुमान मिलन का प्रसंग ही सही माना जाता है। अन्य संस्करणों एवं क्षेत्रीय कहानियों को आधार पर कई कहानियां हैं, जो पूर्ण रूप से सत्‍य से मेल नहीं खातीं।

महर्षि वाल्मीकि जी के अनुसार हनुमान जी की पहली मुलाकात अपने आराध्य श्रीराम से किष्किंधा के वन में हुई थी। यह प्रसंग तुलसीदास जी द्वारा भी रामचरित मानस में जोड़ा गया है, इस महान ग्रंथ को ‘किष्किंधाकाण्ड’ के नाम से जाना जाता है।

यह तब की बात है जब वानर सुग्रीव अपने बड़े भाई बालि के प्रकोप से डरकर अपने मित्र हनुमान की शरण में आते हैं और उनसे छिपने के लिए सहायता मांगते हैं। इसी दौरान सुग्रीव को वन की ओर से दो पुरुषों को आते हुए देखते हैं, उन्होंने सादे वस्त्र पहने थे किंतु शस्त्र धारण किए हुए थे। सुग्रीव के मन में भय प्रकट हुआ। उन्हें लगा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि ये भाई बालि के भेजे हुए गुप्त सैनिक हो सकते हैं जो उनकी हत्‍या के लिए भेजे गए हैं।

सुग्रीव ने इस बात की जानकारी हनुमान जी को दी और कहा कि मित्र, आप स्वयं वन में जाकर पूछताछ करें कि ये दोनों पुरुष कौन हैं, कहां से आए हैं और इनका वन में आने का उद्देश्य क्या है। मित्र की परेशानी को समझते हुए हनुमान ब्राह्मण का रूप धारण कर श्रीराम और लक्ष्मण के सामने पहुंच गए और उनसे पूछताछ करने लगे। हनुमान जी ने पूछा कि आप दोनों कौन हैं, कहां से आए हैं और आपको क्या चाहिए? पूछने पर श्रीराम बोले ने उन्‍हें आने और सीता माता के अपहरण की पूरी घटना बताई।

जैसे ही हनुमान जी को अहसास हुआ कि ये तो प्रभु राम हैं, वह फूले नहीं समाते है और इस बात की खुशी उनके चेहरे पर साफ झलक उठती है। सच्चाई जानने की देर ही थी कि हनुमान जी अपने असली रूप में वापस लौट आए और श्रीराम के चरण पकड़कर धरती पर गिर पड़े। यह पल ऐसा था मानो हनुमान जी को पूर्ण संसार मिल गया हो। उनके मुख से एक भी शब्द नहीं निकल रहा था, बस अपने प्रभु को पा लेने की जो खुशी उनके मुख पर दिखाई दे रही थी, उसका कोई मोल नहीं था।

हनुमान ने श्रीराम से क्षमा मांगी, कहा ‘यह मेरी भूल है जो मैं आपको पहचान ना सका। ना जाने यह कैसे हो गया कि मेरे प्रभु मेरे समक्ष खड़े थे और मैं ज्ञात ही ना कर सका’। तब श्रीराम ने हनुमान को अपने चरणों से उठाया, गले से लगाया और कहा, ‘हनुमान तुम दुखी ना हो, शायद तुम्हें यह आशा ही नहीं थी कि मैं तुम्हे यहां वन में इस वेष में मिलूंगा। तुम दिल छोटा मत करो’।

शरभ अवतार द्वारा भगवान नरसिंह का मान मर्दन
अनूठा ग्रंथ, सीधा पढ़े तो रामकथा और उल्टा पढ़े तो कृष्णकथा

Check Also

जानें, कैसे पड़ा बाबा बर्फानी की गुफा का नाम अमरनाथ?

हिंदुओं के लिए पवित्र तीर्थस्थल अमरनाथ धाम (Amarnath Yatra 2024) है। धार्मिक मान्यता है कि …