काल भैरव की साधना से नहीं होता प्रेत बाधाओं का डर, कहे जाते हैं काशी के कोतवाल

काल भैरव भगवान शिव के ही अंशावतार माने जाते हैं। शिव का अवतार होने के कारण उनमें असीम शक्तियां विद्यमान हैं, जो भी व्यक्ति सच्चे मन से बाबा काल भैरव की साधना करता है, उसे जादू टोने, भूत प्रेत व अन्य किसी भी तरह की बाधाओं का डर नहीं रहता है। आपके मन में जो भी नकारात्मकता मौजूद है, वह बाबा भैरव की कृपा से दूर हो जाती है। काल भैरव को काशी कोतवाल भी कहा जाता है। वहीं, बाबा विश्वनाथ काशी को यहां का राजा माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि यदि बाबा भैरव के बिना दर्शन और पूरा किए आप भगवान विश्वनाथ का दर्शन करते हैं, तो फल की प्राप्ति नहीं होती। भैरव के बारे में अत्यंत ही रोचक कहानी कथाओं में मिलती है। 

शिव विष्णु की श्रेष्ठता

भगवान शंकर के रुद्रावतार काल भैरव का जन्म अगहन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर हुआ था। शिव पुराण में भैरव के जन्म को लेकर यह कथा प्रचलित है कि एक बार भगवान नारायण और शंकर में विवाद हो गया कि आखिर में श्रेष्ठ कौन है। इसके बाद श्रेष्ठता को लेकर दोनों ही महादेवों के बीच युद्ध आरंभ हो गया। जब श्रेष्ठता को लेकर देवताओं ने वेद से पूछा तो इसका जवाब मिला कि जिनके भीतर संपूर्ण विश्व प्रारम्भ से अंत तक भूत, भविष्य और वर्तमान बसा हुआ है, वह भगवान शंकर ही हैं। शिव ही श्रेष्ठ हैं, लेकिन भगवान ब्रह्मा जी ने भोले बाबा का अपमान कर दिया।

पांचवे मुख से अपशब्द

वेद ने जब भगवान शिव को श्रेष्ठ बताया तो ब्रह्माजी ने अपने पांचवे मुख से अपशब्द कह डाले। भगवान शिव अपने बारे में अपशब्द सुनकर बर्दाश्त नहीं कर सके। वेद भी ब्रह्मा जी के कहे शब्दों से दुखी हुए। इसके बाद भगवान शंकर के तेज से रुद्रावतार काल भैरव की उत्पत्ति हुई। ब्रह्म देव ने रुद्र से कहा कि तुम तो मेरे शीष से ही पैदा हुए हो। अधिक रोने के कारण ही तुम्हारा नाम रुद्र रख दिया। तुम मेरी शरण और सेवा में आओ। 

श्रृष्टि रचयिता ब्रह्म देव के ये शब्द सुनकर भगवान शंकर और भी अधिक क्रोधित हो गए। उन्होंने काल भैरव को आदेश दिया कि ब्रह्मा पर विजय पाकर वहां शासन करो। इसके बाद काल भैरव ने अपने नाखून से ब्रह्मा जी का पांचवा सिर काट दिया। इससे भैरव को ब्रह्म हत्या का पाप लगा। भगवान शिव ने कहा कि इसका प्रायश्चित करने के लिए तुम्हें पृथ्वी पर जाना होगा। जब तुम्हारे हाथ से ब्रह्मा जी का सिर धरती पर गिर जाए जो समझ जाना की पाप का प्रायश्चित हो चुका है। इसके बाद काशी में ही भैरव के हाथ से ब्रह्मा का शीष गिरा। यहां ब्रह्म हत्या के पाप से भैरव को मुक्ति मिली। इसके बाद भैरव को काशी के कोतवाल के रूप में नियुक्त किया गया। आज भी मान्यता है कि कोई भी व्यक्ति बिना भैरव की आज्ञा के यहां नहीं रह सकता है।

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