आप सभी को बता दें कि गुड़ी पड़वा या नव संवत्सर के दिन प्रातः नित्य कर्म कर तेल का उबटन लगाकर स्नान आदि से शुद्ध एवं पवित्र होकर हाथ में गंध, अक्षत, पुष्प और जल लेकर देश काल के उच्चारण के साथ पूजन करने से सुख समृद्धि प्राप्त होती है. ऐसे में पूजन का शुभ संकल्प कर नई बनी हुई चौरस चौकी या बालू की वेदी पर स्वच्छ श्वेतवस्त्र बिछाकर उस पर हल्दी या केसर से रंगे अक्षत से अष्टदल कमल बनाकर उस पर ब्रह्माजी की सुवर्णमूर्ति स्थापित करना चाहिए.
उसके बाद * गणेशाम्बिका पूजन के पश्चात् ‘ॐ ब्रह्मणे नमः’ मंत्र से ब्रह्माजी का आवाहनादि षोडशोपचार पूजन करना चाहिए. अब पूजन के बाद विघ्नों के नाश और वर्ष के कल्याण कारक तथा शुभ होने के लिए ब्रह्माजी से विनम्र प्रार्थना की जाती है जो इस मंत्र से करते हैं. ‘भगवंस्त्वत्प्रसादेन वर्ष क्षेममिहास्तु में. संवत्सरोपसर्गा मे विलयं यान्त्वशेषतः.’ अब ब्रह्मा जी के पूजन के बाद विविध प्रकार के उत्तम और सात्विक पदार्थों से ब्राह्मणों को भोजन कराने के बाद ही स्वयं भोजन करना चाहिए और ध्यान रहे कि इस दिन पंचांग श्रवण किया जाता है. इसी के साथ नवीन पंचांग से उस वर्ष के राजा, मंत्री, सेनाध्यक्ष आदि का तथा वर्ष का फल श्रवण करना चाहिए और सामर्थ्यानुसार पचांग दान करना चाहिए तथा प्याऊ की स्थापना करनी चाहिए.
कहते हैं इस दिन नया वस्त्र धारण करना चाहिए तथा घर को ध्वज, पताका, वंदनवार आदि से सजाना चाहिए और गुड़ी पड़वा दिन नीम के कोमल पत्तों, पुष्पों का चूर्ण बनाकर उसमें काली मिर्च, नमक, हींग, जीरा, मिश्री और अजवाइन डालकर खाना लाभदायक माना जाता है क्योंकि इससे रुधिर विकार नहीं होता और आयोग्य की प्राप्ति हो जाती है. कहते हैं इस दिन नवरात्रि के लिए घटस्थापना और तिलक व्रत भी करते और इस व्रत में यथासंभव नदी, सरोवर अथवा घर पर स्नान करके संवत्सर की मूर्ति बनाकर उसका ‘चैत्राय नमः’, ‘वसंताय नमः’ आदि नाम मंत्रों से पूजन करने से लाभ होता है.