अक्सर हम बड़े – बुजुर्गों को गायत्री मंत्र बुदबुदाते हुए या उसका उच्चारण करते हुए सुनते हैं। आखिर यह गायत्री क्या है। मगर जब हम भी इस मंत्र का उच्चारण करते हैं तो हमें भी शक्ति का अनुभव होता है। हमारे आसपास एक रक्षात्मक आवरण बन जाता है। साक्षात् योगेश्वर भगवान श्री कृष्ण ने भी श्रीमद्भगवद् गीता का उपदेश देते हुए कहा है कि छन्दों में मैं स्वयं गायत्री हूं। अर्थात् गायत्री स्वयं श्री हरि विष्णु ही हैं। गायत्री मंत्र उपासक की रक्षा करता है। गायत्री पृथ्वी के समान है। गायत्री में सभी देवी देवताओं की शक्ति विद्यमान है। इस उपासना से बढ़कर कोई उपासना नहीं होती है। इसे कोई लांघ नहीं सकता है। गायत्री में उपासक के प्राण प्रतिष्ठित होते हैं और वे उसकी रक्षा भी करते हैं।
इसकी उपासना करने वाले के आसपास ऐसा आवरण बन जाता है जिसे कोई भेद नहीं सकता है। पुरूष में गायत्री हृदय रूप में है। इस मंत्र में भगवान की आराधना कर विवेक, मेधा, बुद्धि को प्रदान करने की कामना की गई है। इस मंत्र के माध्यम से कामना की गई है कि हे परमपिता आप अपनी असीम कृपा से हमारी सर्वदा रक्षा करते हैं। आप ही जीवन के आधार हैं और सारे दुखों को दूर करने वाले हैं। हमें सद्बुद्धि, विवेक, धारणावति मेधा प्रदान करें।