सावधान: मंगल और राहु का मेल, रच सकता है अमंगल का खेल

मंगल अग्नि व चंद्र जल का स्वामी है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार कर्क स्थित मंगल को नीच कहा जाता है जिसका साधारण शब्दों में अर्थ है मंगल का बलहीन होना। कुंडली में नीच का मंगल अशुभ फल देता है। अग्नि व जल आपस में शत्रुता रखते हैं। अशुद्ध राहु की छाया शुक्रवार दि॰ 18.08.17 को रात 00:37 बजे सिंह से कर्क में प्रवेश कर गई है। परंतु राहु सिंह से कर्क में शनिवार दि॰ 09.09.17 रात 02:03 पर प्रवेश करेगा। दोनों लिहाज से दि॰ 18.08.17 से दि॰ 09.09.17 तक राहु मंगल की युति रहेगी जिससे की अंगारक दोष बनेगा। जिसके कारण सभी का शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य बिगड़ सकता है।

रविवार दि॰ 27.08.17 को प्रातः 08:51 तक मंगल नीच राशि में रहेगा अर्थात कालपुरुष सिद्धांत के अनुसार मंगल कालपुरुष के चौथे भाव में रहेगा तथा राहू ग्रह कालपुरुष के पांचवें भाव से निकलकर चौथे भाव में जाएगा। कालपुरुष सिद्धांत के अनुसार चौथा भाव माता, हृदय, मातृभूमि, चल-अचल संपत्ति, कार्यक्षेत्र का अवरोह, रक्त, छाती और गृहक्षेत्र को संबोधित करता है। कालपुरुष सिद्धांत के अनुसार मंगल समस्त जगत के क्रोध, दुर्घटना, भोग-विलासिता, शक्ति, जोश और ओज को भी संचालित करता है। कालपुरुष में मंगल के 4थे भाव में नीच होने से आम जनमानस की हैल्थ बिगड़ सकती है, दांपत्य पर अशुभ प्रभाव पड़ सकते हैं, अर्थक्षेत्र मंदा पड़ सकता है, शारीरिक श्रम में कमी आ सकती है व व्यवसायिक अस्थिरता रह सकती है।

चिकित्सा ज्योतिष के अनुसार रोगों का विचार भाव संख्या 6, 3 व 11 से करते हैं। साथ ही 6 भाव के कारक मंगल-शनि, लग्न-लग्नेश, चंद्र-राशीश व इन सभी पर पाप ग्रहों के प्रभाव को देखते हैं। आयुष ज्योतिष के अनुसार मंगल खून का कारक है। हृदय खून संचार का काम करता है जिसके कारक ग्रह सूर्य-चंद्र होते हैं। यदि ये तीनों ग्रह अशुभ या नीच या शत्रुराशि या पाप ग्रह के प्रभाव में हो, तो व्यक्ति रक्त जनित बीमारियों से ग्रसित होता है। यदि तीनों ग्रह चौथी राशि में स्थित हों, या कर्क राशि व इसके स्वामी चंद्र पर मंगल का प्रभाव हो या चंद्र लग्नेश, राशीश होकर नीच का होकर त्रिकभाव में हो, तो भी रक्त जनित बीमारियां होती हैं। जब सूर्य, चंद्र, मंगल पर ग्रहण या पितृदोष हो तो भी जातक को रक्त जनित बीमारियां होती हैं।

मेडिकल एस्ट्रोलॉजी के अनुसार मन का विचार 4थे भाव व मस्तिष्क का विचार 5वें भाव से करते हैं। मन-मस्तिष्क का कारक चंद्रमा को मानते हैं। मन-मस्तिष्क का सीधा संबंध हृदय से होता है। हृदय रोग भी 4थे भाव से देखे जाते हैं। अतः 4था भाव, चतुर्थेश, कारक चंद्र-सूर्य पर मंगल व राहू का प्रभाव हृदय रोगों को जन्म देता है। सोम दि॰ 21.08.17 को सूर्य चंद्र व मंगल तीनों राहू के प्रभाव में आकार ग्रहण, पितृ व आंगरक दोष का निर्माण कर रहे हैं। जिसके कारण शुक्र दि॰ 18.08.17 से शनि दि॰ 09.09.17 तक आम जनता के स्वास्थ्य में अकस्मात गिरावट आ सकती है। इसके साथ-साथ दुर्घटनाएं, रक्तपात, फसाद, दंगे व आतंकवादी घटनाएं भी बढ़ सकती हैं। इन 21 दिन में सबसे ज्यादा दिल के मरीजों को तकलीफ पहुंच सकती है।

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