59 साल बाद शश योग में महाशिवरात्रि का महापर्व मनाया जाएगा: धर्म

देवों के देव महादेव की आराधना का पर्व महाशिवरात्रि इस बार 21 फरवरी को मनाया जाएगा। खास बात यह है कि 59 साल बाद शश योग में यह पर्व मनाया जाएगा। इस दिन शनि व चंद्र मकर राशि में, गुरु, धनु राशि में, बुध कुंभ राशि में तथा शुक्र मीन राशि में रहेंगे।

इससे पहले ग्रहों की यह स्थिति और ऐसा योग वर्ष 1961 में था। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस दिन सर्वार्थसिद्धि योग भी बन रहा है। यह योग साधना-सिद्धि के लिए खास महत्व रखता है।

पंडित मनोज कुमार द्विवेदी ने बताया कि मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था। फाल्गुन महीने की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी अर्थात अमावस्या से एक दिन पहले वाली रात को महाशिवरात्रि का त्योहार मनाया जाता है। महाशिवरात्रि व्रत फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को किया जाता है। इस व्रत को अर्धरात्रिव्यापिनी चतुर्दशी तिथि में करना चाहिए।

21 फरवरी को शाम 5:22 बजे से 22 फरवरी (शनिवार) की शाम 7:02 बजे तक।

माना जाता है कि जब कुछ नहीं था अर्थात सृष्टि के आरंभ में इसी दिन मध्यरात्रि को भगवान ब्रह्मा के शरीर से भगवान शंकर रुद्र रूप में प्रकट हुए थे। यह भी मान्यता  है कि भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह भी इसी दिन हुआ था। इस कारण महाशिवरात्रि हिंदू धर्म में आस्था रखने वालों एवं भगवान शिव के उपासकों का एक मुख्य त्योहार है।

ऐसा भी माना जाता है कि महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव की पूजा करने, व्रत रखने और रात्रि जागरण करने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं। मान्यता यह भी है कि इस दिन भगवान शिव की सेवा में दान-पुण्य करने व शिव उपासना से उपासक को मोक्ष मिलता है।

मिट्टी के लोटे में पानी या दूध भरकर, ऊपर से बेलपत्र, आक-धतूरे के फूल, चावल आदि डालकर ‘शिवलिंग’ पर चढ़ाना चाहिए। अगर आस-पास कोई शिव मंदिर नहीं है। तो घर में ही मिट्टी का शिवलिंग बनाकर उनका पूजन किया जाना चाहिए।

शिव पुराण का पाठ और महामृत्युंजय मंत्र या शिव के पंचाक्षर मंत्र ओम नम: शिवाय का जाप करना चाहिए।  शिवरात्रि का पूजन ‘निशीथ काल’ में करना सर्वश्रेष्ठ रहता है। हालांकि भक्त रात्रि के चारों प्रहरों में अपनी सुविधानुसार यह पूजन कर सकते हैं।

व्रत के आहार में सेंधा नमक और काली मिर्च का प्रयोग करें। आलू, सिंघाड़ा और साबूदाना भी खा सकते हैं।
किससे करें शिव का अभिषेक

दही- दही के अभिषेक से आज्ञाकारी संतान की प्राप्ति होती है।
दूध-  जीवन के कष्टों से मुक्ति मिलती है।
शहद- शिव को अतिप्रिय,  वाणी दोष दूर होता है।

घी- मोक्ष की प्राप्ति होती है।
पंचामृत- धन व संपत्ति मिलती है।
चंदन- लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।
चावल का आटा- ऋण से मुक्ति होती है
गन्ने के रस- शत्रुओं से मुक्ति।

चतुर्दशी तिथि के स्वामी भगवान भोलेनाथ अर्थात स्वयं शिव ही हैं। इस कारण प्रत्येक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मासिक शिवरात्रि के तौर पर मनाया जाता है। ज्योतिष शास्त्रों में इस तिथि को अत्यंत शुभ बताया गया है।

गणित ज्योतिष के आंकलन के हिसाब से महाशिवरात्रि के समय सूर्य उत्तरायण हो चुके होते हैं। और ऋतु-परिवर्तन भी चल रहा होता है। ज्योतिष के अनुसार चतुर्दशी तिथि को चंद्रमा अपनी कमजोर स्थिति में आ जाता है।

चन्द्रमा को शिव जी ने मस्तक पर धारण किया हुआ है। इसलिए शिवजी के पूजन से व्यक्ति का चंद्रमा सबल होता है जो मन का कारक है। दूसरे शब्दों में कहें तो शिव की आराधना इच्छा-शक्ति को मजबूत करती है और अन्त:करण में साहस व दृढ़ता का संचार करती है।

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