एक शर्त पर राजा शांतनु से हुआ था गंगा माँ का विवाह, सात पुत्रों को बहा दिया था नदी में

हर साल आने वाला गंगा दशहरा का पर्व इस साल एक जून को मनाया जाने वाला है. ऐसे में आज हम आपको गंगा माँ से जुडी एक ऐसी कथा बताने जा रहे हैं जिसे आपको जरूर सुनना चाहिए.

महाभारत के अनुसार – राजा शांतनु को देव नदी गंगा से प्रेम हो गया था. राजा ने गंगा से विवाह करने की इच्छा बताई तो गंगा ने शांतनु के सामने शर्त रखी कि उसे अपने अनुसार काम करने की पूरी स्वतंत्रता होनी चाहिए, जिस दिन शांतनु उन्हें किसी बात के लिए रोकेंगे, वह उन्हें छोड़कर चली जाएगी. वहीं शांतनु ने गंगा की ये शर्त मान ली और विवाह कर लिया. विवाह के बाद गंगा जब भी किसी संतान को जन्म देतीं, उसे तुरंत नदी में बहा देती थी.

वहीं शांतनु अपने वचन की वजह से गंगा को ये काम करने से रोक नहीं पाते थे. वे गंगा को खोने से डरते थे. जब आठवीं संतान को भी गंगा नदी में बहाने आई तो शांतनु से रहा नहीं गया. उन्होंने गंगा को रोक कर पूछा कि वो अपनी संतानों को इस तरह नदी में बहा क्यों देती है? गंगा ने कहा कि राजन् आज आपने अपनी संतान के लिए मेरी शर्त को तोड़ दिया. अब ये संतान ही आपके पास रहेगी. शांतनु ने अपनी संतान को बचा लिया, लेकिन उसे अच्छी शिक्षा के लिए कुछ सालों के लिए गंगा के साथ ही छोड़ दिया. उस लड़के का नाम रखा गया था देवव्रत.

वहीं कुछ वर्षों बाद गंगा उसे लौटाने आईं और तब तक वह एक महान योद्धा और धर्मज्ञ बन चुका था. पुत्र के लिए शांतनु ने गंगा जैसी देवी का त्याग स्वीकार किया, उसी पुत्र को शिक्षा के लिए कई साल अपने से दूर भी रखा. इसी देवव्रत ने शांतनु का विवाह सत्यवती से करवाने के लिए आजीवन अविवाहित रहने की भीषण प्रतिज्ञा की थी. जिसके बाद इसका नाम भीष्म पड़ा. भीष्म ने ही आखिरी तक अपने पिता के वंश की रक्षा की.

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