ज्योतिष एवं पौराणिक संदर्भों में अमरनाथ यात्रा

06_07_2015-amarnath-yatra25_201576_165255 (1)अमरनाथ शिवलिंग हिम से निर्मित होता है। यह शिवलिंग अन्य शिवलिंगों की भांति साल भर नहीं रहता है। वर्ष के कुछ महीनों में यहां हिम से स्वयं शिवलिंग का निर्माण होता है। स्वयं हिम से निर्मित शिवलिंग होने के कारण इसे ‘स्वयंभू हिमलिंग शिवलिंग भी कहा जाता है। आषाढ़ पूर्णिमा से शिवलिंग का निर्माण होने लगता है जो श्रावण पूर्णिमा के दिन पूर्ण आकार में आ जाता है। ज्योतिष में चन्द्र को जलतत्व का ग्रह माना गया है । साथ ही भगवान शिव के मस्तक पर चन्द्र के विराजमान होने से भगवान शिव का एक नाम शशिशेखर भी है। पढ़ें: जब हनुमानजी ने किया अक्षय कुमार का वध चन्द्रमा के घटने-बढऩे के साथ-साथ शिवलिंग का आकार भी घटता-बढ़ता रहता है। श्रावण पूर्णिमा को यह अपने पूरे आकार में आ जाता है और अमावस्या तक धीरे-धीरे छोटा होता जाता है। आस-पास जमा हुआ बर्फ कच्चा होता है जबकि हिम से बना शिवलिंग ठोस होता है। इस स्थान पर आकर ईश्वर के प्रति आस्था मजबूत हो जाती है। इस तरह शिवलिंग का निर्माण सदियों से होता चला आ रहा है। एक नजर लोक मान्यता पर लोक मान्यता है कि भगवान शंकर की इस पवित्र गुफा की खोज का श्रेय एक गड़रिये बुटा मलिक को जाता है। एक बार बुटा मलिक पशुओं को चराता हुआ ऊंची पहाड़ी पर निकल गया। वहां उसकी मुलाकात एक संत से हुई। उस संत ने गड़रिये को कोयले से भरा थैला दिया। वह थैला लेकर गड़रिया घर पहुंचा। जब उसने वह थैला खोला तो वह यह देखकर अचंभित हो गया कि उस थैले में भरे कोयले के टुकड़े सोने के सिक्कों में बदल गए। पढ़ें: ‘सृष्टि’ तथा ‘लय’ का अहसास कराते हैं बाबा अमरनाथ वह गड़रिया बहुत खुश हुआ। वह गड़रिया तुरंत ही उस दिव्य संत का आभार प्रकट करने के लिए उसी स्थान पर पहुंचा। लेकिन उसने वहां पर संत को न पाकर उस स्थान पर एक पवित्र गुफा और अद्भुत हिम शिवलिंग के दर्शन किए। जिसे देखकर वह अभिभूत हो गया। उसने पुन: गांव पहुंचकर यह सारी घटना गांववालों को बताई। सभी ग्रामवासी उस गुफा और शिवलिंग के दर्शन के लिए वहां आए। माना जाता है कि तब से ही इस तीर्थयात्रा की परंपरा शुरू हो गई। ऋषि कश्यप ने किए थे सर्वप्रथम बाबा बर्फानी के दर्शन इसी प्रकार पौराणिक मान्यता है कि एक बार कश्मीर की घाटी जलमग्न हो गई। उसने एक बड़ी झील का रूप ले लिया। जगत के प्राणियों की रक्षा के उद्देश्य से ऋषि कश्यप ने इस जल को अनेक नदियों और छोटे-छोटे जलस्रोतों के द्वारा बहा दिया। उसी समय भृगु ऋषि पवित्र हिमालय पर्वत की यात्रा के दौरान वहां से गुजरे। तब जल स्तर कम होने पर हिमालय की पर्वत श्रृंखलाओं में सबसे पहले भृगु ऋषि ने अमरनाथ की पवित्र गुफा और बर्फानी शिवलिंग को देखा। मान्यता है कि तब से ही यह स्थान शिव आराधना का प्रमुख देवस्थान बन गया ।

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