आखिर क्यों पुरुषोत्तम मास में नहीं की जाती नवधा भक्ति, जानिए…

भगवान की पूजा-अर्चना करने का एक सामान्य तरीका होता है, लेकिन पुराणों में नवधा भक्ति करना सबसे सर्वश्रेष्ठ माना गया है। असल में भक्ति के 9 प्रकारों को ही नवधा भक्ति का नाम दिया गया है। श्रीमद्भागवत में 9 तरह की भक्ति के बारे में भगवान कृष्ण ने बताया है। क्योंकि यह मास भगवान विष्णु का है इसलिए विशेष रूप से इस मास में भगवान विष्णु के सभी अवतरों की पूजा की जाती है। साथ ही यदि कोई नवधा भक्ति करे तो उसके लिए देवदर्शन के योग्य भी बन जाते हैं। नवधा भक्ति मनुष्य के हर कष्ट दूर करने के साथ उसकी मनोकामना को पूरा करने वाली होती है। श्रीमद्भागवत में उल्लेख है कि यदि मनुष्य जीवन के अपने लक्ष्य को हासिल करना चाहता है, तो उसे नवधा भक्ति की राह पकड़नी होगी

श्रीमद्भागवत महापुराण के इस चौपाई में नवधा भक्ति का उल्लेख है:

श्रवणं कीर्तनं विष्णो: स्मरणं पादसेवनम्।

अर्चनं वन्दनं दास्यं सख्यमात्मनिवेदनम्।।

इस चौपाई में बताया गया है कि श्रवण, कीर्तन, स्मरण, पादसेवन, अर्चन, वंदन, दास्य, सख्य और आत्मनिवेदन या समर्पण ही भक्ति का सर्वश्रेष्ठ सदकर्म है और यही नवधा भक्ति है। तो आइए आपको इन सदकर्म के बारे में विस्तार से बताएं।

नवधा भक्ति के प्रकार:-

श्रवण भक्ति : भक्ति का सर्वप्रथम सदकर्म है श्रवण करना। एक भक्त को श्रद्धा पूर्वक भगवान के बारे में अधिक से अधिक जानकारी पाने के लिए अपने गुरु से ज्ञान लेना चाहिए। उनके चरित्र, लीला, महिमा और उनके नाम को सुनना चाहिए। जितना हो सके उतना भक्तिरस को पाने के लिए श्रवण करें।

कीर्तन भक्ति : नवधा भक्ति का दूसर सदकर्म है कीर्तन करना। भगवान को याद करते हुए उनके नाम को जपना, भजन-कीर्तन करना मनुष्य को ईश्वर के करीब ले जाता है और उसके मुख से निकलने वाले पाप कम होते जाते हैं। मनुष्य जब मन से भक्ति में डूब कर प्रभु को याद करता है तो ईश्वर उसके करीब आते हैं।

स्मरण भक्ति: ईश्वर का स्मरण करना सबसे आसान और कारगर मानी गई है। नवधा भक्ति में इसे सबसे महत्वपूर्ण माना गया है, क्योंकि प्रभु का स्मारण कभी भी किसी वक्त किया जा सकता है। बस निर्मल और शुद्ध मन से ईश्वर को स्मरण मनुष्य को भगवान से मिला सकता है।

पादसेवन भक्ति: पादसेवन यानी चरण भक्ति करना। भगवान के चरण की भक्ति मानसिक सेवा के तहत भी की जा सकती है। भगवान के स्मरण के साथ उनके चरण का स्मरण करते हुए मन में उसकी पूजा करान चरण भक्ति या पादसेवन कहलाता है।

अर्चन भक्ति: नवधा भक्ति में उल्खित अर्चन भक्ति बहुत ही आसान है। इसमें भगवान की रोज धूप एवं दीप दिखाने और उनको भोग लगाने के बारे में बताया गया है।

वंदन भक्ति: भक्ति की इस विधा में भगवान का स्वरुप मानकर उनकी पूजा-अर्चना करने के बारे में बताया गया है।

दास भक्ति: एक भक्ति के लिए अपने प्रभु का सेवक यानी दास बनना ही दास भक्ति है। इसके तहत भक्त अपने भगवान को अपना स्वामी समझ कर उनकी सेवा करता है।

सख्य भक्ति: ये भक्ति भी बहुत निराली होती है। इसमें भक्त अपने प्रभु का अपना सखा मानता है और उस अनुसार उनकी भक्ति में खो जाता है।

आत्मनिवेदन या समर्पण भक्ति: इसके तहत भक्त अपने भगवान को अपना सब-कुछ समर्पित कर देता है औश्र वैराग्य रूप में जीवन जीता है। नवधा भक्ति बहुत आसान है, लेकिन इसे करने वाले का मन और कर्म शुद्ध होना चाहिए।

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