क्यों मनाया जाता है छठ पर्व, क्या है इसका वैज्ञानिक रहस्य?

chhath1-1447656397-300x214बिहार, उत्तरप्रदेश का लोकप्रिय त्योहार डाला छठ की शुरुआत रविवार को नहाय-खाय के साथ हुई। इसके लिए श्रद्धालुओं ने व्रत रखा। सोमवार की शाम को दूध-गुड़ की खीर का भोग लगाकर प्रसाद ग्रहण करेंगे। पर्व की विशेष पूजा मंगलवार शाम को सूर्यास्त के समय की जाएगी। बुधवार सुबह उगते हुए सूर्य को अघ्र्य देकर व्रत संपूर्ण होगा। छठ पूजा भगवान सूर्यदेव की आराधना का पर्व है। यह झारखंड और नेपाल में भी धूमधाम के साथ  मनाया जाता है। क्या आप जानते हैं कि छठ पर्व मनाने का कारण क्या है और इस पर्व के साथ कौनसे वैज्ञानिक रहस्य जुड़े हैं? जानिए आगे…

संस्कृत की षष्टी तिथि को छठ कहा जाता है। यह पर्व दीपावली के बाद आता है। यह चार दिवसीय उत्सव है जिसमें पवित्रता और तपस्या का बहुत महत्व है। पर्व की शुरुआत चतुर्थी को होती है। इस तिथि को नहाय-खाय के रूप में मनाया जाता है। इसके बाद निरंतर 36 घंटे का उपवास रखना होता है। जो यह व्रत करता है उसे तन-मन की शुद्धि का ध्यान रखना होता है। 
इस पर्व का मुख्य आकर्षण होता है जलाशय में खड़े होकर भगवान सूर्य को अर्घ्य देना। इस दौरान जल, दुग्ध तथा प्रसाद अर्पित किया जाता है। छठ के व्रत में मन तथा इंद्रियों पर नियंत्रण रखना होता है। जल में खड़े होकर सूर्यदेव को अर्घ्य देने का भी खास महत्व है। चूंकि दीपावली के बाद सूर्यदेव का ताप पृथ्वी पर कम पहुंचता है। इसलिए व्रत के साथ सूर्य की अग्नि के माध्यम से ऊर्जा का संचय किया जाता है ताकि शरीर सर्दी में स्वस्थ रहे।

इसके अलावा सर्दी आने से शरीर में कई परिवर्तन भी होते हैं। खासतौर से पाचन तंत्र से संबंधित परिर्वतन। छठ पर्व का उपवास पाचन तंत्र के लिए लाभदायक होता है। इससे शरीर की आरोग्य क्षमता में वृद्धि होती है। प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार, इस मौसम में शरीर में कई विजातीय द्रव्य जमा हो जाते हैं।

जब उपवास, सूर्यदेव को अर्घ्य और जलाशय में पूजन करते हैं तो शरीर की जीवनी शक्ति ज्यादा मजबूत होती है, वह इन द्रव्यों का निष्कासन करने से स्वस्थ होता है। ज्योतिष के अनुसार, अगर कुंडली में किसी ग्रह का दोष हो और छठ पूजा में सूर्य का पूजन किया जाए तो उसका निवारण होता है। साथ ही सूर्य को अर्घ्य देने से भाग्योदय की प्राप्ति होती है।

 

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