अध्यात्म की नजर से परमआनंद की अनुभूति है काम

अध्यात्म में ध्याspritualandkam_20_11_2015न को सर्वश्रेष्ठ बताया गया है। ध्यान हमारे शरीर को केंद्रित रखता है। हमारी पांचों ज्ञानेंद्रियां (आंख, नाक, जीभ, कान और स्पर्श) का एक साथ आनंद लेना ही ‘काम’ है।

कामसूत्र बताता है कि जीवन में पूर्ण आनंद के साथ आध्यात्मिकता को कैसे प्राप्त किया जा सकता है। दरअसल सेक्स परमानंद की चरम अवस्था है। इसलिए यदि कोई अपनी यौन इच्छा को दबाता है तो यह बहुत सी मानसिक बेचैनी को जन्म देता है और जीवन से असंतुष्ठ हो जाता है।

काम की उत्पत्ति सृष्टि की रचना का मुख्य आधार है। दुनिया में यदि काम न हो तो सृष्टि का चक्र ही थम जाए। महर्षि वात्स्यायन का कामसूत्र महज पोर्नोग्राफी की किताब न होकर इसमें बहुत कुछ है। यदि इसे सकारात्मक दृष्टिकोण से देखा जाए।

ऐसे मिल सकती है परमशांति

आध्यात्मिक गुरु दीपक चोपड़ा अपनी किताब ‘कामसूत्र’, ‘इनक्ल्यूडिंग द सेवन स्पिरिचुअल लॉ ऑफ लव’ में आध्यात्मिकता और कामुकता के सार्वभौमिक विषयों की पर लिखते हैं कि, सेक्स से सम्बंधित सभी समस्याओं जैसे न्युरोसिस, डेवियन्सी, सेक्सुअल मिस-बिहेव, हिंसा आदि को अवरोध, प्रतिरोध, दबाव का कारण मानना चाहिए ना कि सिर्फ सेक्स इच्छा को इसके लिए जिम्मेदार।

यदि हमें बिना किसी बाहरी रूकावट के अपनी इच्छाओं और भावनाओं को खोजने और इनकी पूर्ति की इजाजत दी जाए तो ये चरम पर नहीं पहुंचेंगी। अधिकता, हर रूप में, अवरोध, प्रतिरोध, दबाव की प्रतिक्रिया है।

यदि हम गहराई में जाएंगे तो पाएंगे कि हर सेक्स पोजीशन अपने आप में एक पावरफुल आध्यात्मिक व्याख्या प्रस्तुत करती है। इसलिए सेक्स की परिभाषा जो हम समझते हैं उससे कहीं अलग है। आपको आनंद की एक अलग परिभाषा समझनी होगी और इसे अनुभव करना होगा। तभी आपको परमशांति की प्राप्ति होगी।

काम है जीवन का तीसरा लक्ष्य

पृथ्वी पर उत्पत्ति का केंद्र सेक्स है। कामसूत्र में कला, रति क्रीड़ा, और जीवन के आनंद को समझने के लिए एक सभ्य सिद्धांत प्रस्तुत करता है। इसमें मौजूद 64 काम कलाएं एक अच्छी पत्नी का सिर्फ मार्गदर्शन नहीं बल्कि ये महिला को कुशल, सुन्दर, निपुण और बुद्धिमान होने का एक रास्ता दिखाती हैं।

कामसूत्र में दैहिक ऊर्जा को किस तरह ध्यान से और खुशी से जोड़ा जा सकता है यह बताया गया है। दिलचस्प बात है कि कामसूत्र मानव जीवन पर लिखे गए तीन प्रमुख प्राचीन में ग्रंथों से एक है।

पहले दो ग्रंथों में से पहला है धर्म शास्त्र जिसमें नैतिकता और जीवन के रास्ते के बारें में बताया गया है और दूसरा अर्थ शास्त्र है जिसमें धन सम्पदा, समृद्धि के बारे में बताया गया है। काम को जीवन का तीसरा लक्ष्य बताया गया है।

 
 
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