श्रीहरि की भक्ति का अद्वितीय ग्रंथ है नारद पुराण

_59012193_59012192-1445272261हिंदू धर्म के अठारह पुराणों में से एक है ‘नारद पुराण’। नारद पुराण को महर्षि व्यास जी ने लिपिबद्ध किया है। इस पुराण में 25,000 श्लोंकों का संग्रह है जिनमें से वर्तमान में केवल 22,000 श्‍लोक ही मौजूद हैं। विष्णु भक्ति की अद्वितीय रचना नारद पुराण दो भागों में बंटा है।

पहला भाग में चार अध्ययाय हैं।जिसमें मुख्य रूप से सुत और शौनक संवाद, ब्रह्मांड की उत्पत्ति, विलय, शुकदेव का जन्म, मंत्र उच्चारण करने की शिक्षा, पूजा के कर्मकांड, व्रत और अनुष्ठान की विधियों के बारे में बताया गया है। दूसरा भाग भगवान विष्णु के अवतारों पर केंद्रित है।

इस पुराण के पहले अध्ययाय की शुरुआत नैमिषारण्य में हुए सम्मेलन से शुरु होता है। यह पुराण चार विषयों पर केंद्रित है। पहला- इस पृथ्वी पर कौन-कौन से स्थान पवित्र हैं। दूसरा- संसार में आधिदैविक, आधिभौतिक और आध्यात्मिक तापों से दुःखी मनुष्यों की मुक्ति का सरल उपाय। तीसरा- विष्णु के चरणों में अनन्य भक्ति पाने का सरल उपाय और चौथा विषय है, दैनिक धार्मिक कार्यों को करते हुए मनुष्य अपने दायित्व का पालन कैसे कर सकता है।

नारदपुराण में उल्लेखित है कि लोभ से, दूसरों के कहने पर, अज्ञान से और भय से ये ऐसी 4 ऐसी भावनाएं हैं, जिनसे भगवान की पूजा की जाए तो मनुष्य को उस पूजा का लाभ नहीं मिलता है। कहते हैं कि यदि नारद पुराण को सुनने और पढ़ने से पापी व्यक्ति भी पाप मुक्त हो जाता है।जो भी मनुष्य भक्तिपूर्वक एकाग्रचित्त होकर इस पुराण को सुनता अथवा सुनाता है, वह ब्रह्मलोक में जाता है। जो कोई व्यक्ति आश्विन पूर्णिमा के दिन सात गाय के साथ नारद पुराण ब्राह्मण को दान करता है वह निश्चय ही मोक्ष व स्वर्ग प्राप्त करता है। ऐसा धर्म ग्रंथों में वर्णित है।

 
 
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