मत करना ये 6 काम वर्ना वक्त से पहले आ जाएगी मौत

fear7-1453454778-300x214विदुर उच्च कोटि के विचारक थे। उनके अनुभव धर्म, नीति और सदाचार पर आधारित हैं। उन्होंने राजपरिवारों का उत्थान देखा था, वैभव की पराकाष्ठा देखी थी तो युद्धभूमि में बहता रक्त और राजपरिवारों का पतन भी देखा था। 

अपने उपदेशों में उन्होंने ऐसे कार्यों का निषेध किया है जो समय से पूर्व मृत्यु का कारण बनते हैं। साथ ही उन्होंने मनुष्य को ऐसे कार्यों से दूर रहने के लिए कहा है जो उसके चरित्र व जीवन को क्षति पहुंचाते हैं। 
 जानिए महात्मा विदुर द्वारा बताए गए ऐसे 6 कार्यों के बारे में जिन्हें करने से मनुष्य की आयु कम होती है।

अपने रूप, पद, सत्ता, गुण और सुंदरता को स्वीकार करना और विनम्र रहना सद्गुण की श्रेणी में आता है परंतु इन पर अहंकार करना अवगुण होता है। यहीं से मनुष्य का पतन प्रारंभ होता है। महाभारत भी इन्हीं खूबियों के दुरुपयोग से सावधान रहने की बात कहता है। यही महात्मा विदुर ने कहा है। 

 जो मनुष्य घमंडी होता है उसका कोई मित्र-सहायक नहीं बनना चाहता। उसके अनेक शत्रु बन जाते हैं जो उसके लिए संकट उत्पन्न कर सकते हैं।

संसार में कार्य-व्यवहार के लिए वाणी का कुशल उपयोग जरूरी है। बिना वाणी के जीवन अत्यंत कष्टदायक होता है। ईश्वर ने मनुष्य को वाणी का वरदान दिया है ताकि उसका जीवन सहज और सुखद हो लेकिन वाणी का दुरुपयोग बड़े-बड़े अनर्थ करवा सकता है। 

 महाभारत के युद्ध में भी वाणी का दुरुपयोग उत्तरदायी था। विदुर कहते हैं कि जो मनुष्य वाणी का सही उपयोग नहीं करता, जो बिना सोचे-समझे बोलता है, वह अपनी आयु कम करता है।
 

 जो मनुष्य बात-बात पर क्रोध करता है, उसका तन, मन और संपूर्ण जीवन कष्ट प्राप्त करता है। अत: क्रोध से बचने में ही सबका कल्याण है।
 अत: न तो ऐसा बनें और न ही ऐसे लोगों से संबंध रखना चाहिए। ऐसा मानव शीघ्र ही रोग, कष्ट एवं मृत्यु को आमंत्रित करता है।

जो मानव अत्यंत स्वार्थी हो, जिसे सदैव अपनी ही चिंता हो, जो कभी लोककल्याण के काम नहीं करता, जो अपने हितों की पूर्ति में ही लगा रहे, जो कभी दान-परोपकार नहीं करता, ऐसे व्यक्ति का जीवन पृथ्वी पर बोझ के समान है।

कहा जाता है कि क्रोध मनुष्य का शत्रु है। जिसके पास क्रोध है, उसे शत्रु की आवश्यकता नहीं है। क्रोध के वशीभूत होकर लिए गए निर्णय दुखदायी होते हैं। कई बार ऐसे निर्णय अत्यंत विनाशकारी सिद्ध होते हैं। इसलिए मनुष्य को संयम और विवेक के आधार पर ही निर्णय लेने चाहिए। 

उक्त विशेषताओं की तरह ही जो मनुष्य कभी संतुष्ट न हो, उसे भी विदुर ने उत्तम नहीं माना है। संतुष्टि न होने से तात्पर्य है- जो दूसरों की बिल्कुल भी परवाह न करे, जिसे खुद से छोटे जीवों, मनुष्यों की कोई परवाह न हो। ऐसे व्यक्ति का जीवन व्यर्थ है। 

सांसारिक भोग और पदार्थों की कोई सीमा नहीं है परंतु जिसका मन सदैव इनमें ही भटकता रहता है, वह अपनी आयु और पुण्य नष्ट करता है।
अच्छे मित्र सौभाग्यशाली को मिलते हैं। वे स्वयं को और अपने मित्रों को यश दिलाते हैं। कृष्ण-सुदामा, कृष्ण-अर्जुन एक दूसरे के लिए मददगार साबित हुए। आज भी इन मित्रों की मिसाल दी जाती है। वहीं दुष्ट मित्र का संग कलंक और मृत्यु लाता है। दुर्योधन और कर्ण की मित्रता ऐसी ही थी। कर्ण पराक्रमी और महान योद्धा था लेकिन वह अपने मित्र दुर्योधन के बुरे कार्यों में भी सहभागी बनकर रहा। उसे अपने मित्र को बुरे कार्यों से रोकना चाहिए था परंतु वह उसका उत्साह बढ़ाता रहा, इसीलिए दुर्योधन के साथ ही वह भी मृत्यु को प्राप्त हुआ
 

 
जानिए ब्रह्मांड के पहले 'पत्रकार' की रोचक कहानी
पॉजिटिव एनर्जी से भर देते हैं फ्रेश फ्लॉवर्स

Check Also

घर में घुसते ही नहीं पड़नी चाहिए इन चीजों पर नजर…

वास्तु शास्त्र को हिंदू धर्म में विशेष महत्व दिया गया है। मान्यताओं के अनुसार, यदि …