पौराणिक कथाओं में अनेक प्रकार के वरदान और शाप का उल्लेख किया गया है। इन कथाओं का उद्देश्य यह बताना है कि नेक काम हमेशा सफलता और आशीर्वाद लेकर आते हैं। भलाई और लोककल्याण के कार्य वरदान और आशीर्वाद लाते हैं जिनका फल अमिट है, परंतु बुराई और दूसरों को पीड़ा देने वाले कार्यों का फल भी अमिट है। यह मनुष्य का तब तक पीछा नहीं छोड़ते जब तक कि उसे दंड नहीं मिल जाता। शाप इसी दंड का दूसरा पहलू है जो दोषी को अभीष्ट फल के रूप में मिलता है। पुराणों में शाप और वरदान की अनेक कथाएं हैं।
जब विष्णुजी को कमल का पुष्प नहीं मिला तो उन्होंने अपना एक नेत्र भगवान को अर्पित कर दिया। इससे शिव अत्यंत प्रसन्न हुए। उन्होंने विष्णुजी की तपस्या स्वीकार की और उनका नेत्र भी लौटा दिया।
कथा के अनुसार, जब दैत्यों के अत्याचार बढ़ गए तब सभी देवता विष्णुजी के पास गए और उनसे विनती की कि वे दैत्यों के आतंक पर विराम लगाएं। भगवान विष्णु उनकी पीड़ा शिवजी तक पहुंचाना चाहते थे।
भगवान विष्णु के हाथों में सुदर्शन चक्र भी विराजमान है। इससे वे सज्जनों की रक्षा एवं दुर्जनों को दंड देते हैं। यह चक्र उन्हें भगवान शिव ने प्रदान किया था ताकि वे संपूर्ण ब्रह्मांड का कल्याण करें। उन्होंने अनेक दैत्यों का इससे संहार किया। शिवजी द्वारा विष्णुजी को सुदर्शन चक्र प्रदान करने की भी एक रोचक कथा है।
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