ऐसे शुरू हुई नाग को दूध पिलाने की परंपरा

snakenew_01_02_2016नागभट्ट अपने दोस्तों श्रीपाद और यशोधर्मन से कहते हैं कि, नाग जाति पर्वतवासी है। उसका प्रतीक ही फणधारी सांप है। देवपूजा में सिंदूर का जब से उपयोग हुआ, तभी से हिंदू महिलाएं अपनी मांग में सौभाग्य की कामना के लिए सिंदूर का उपयोग करते हैं।

नागों का प्रिय फल नारंगी है। नाग नदियों को अपनी बहन मानते हैं। क्योंकि इनका निवास स्थान ज्यादातर नदियों के किनारे ही रहता है। इस संबंध में पुराणों में एक और कथा का उल्लेख मिलता है। प्रचीन काल में दशराज्ञयुद्ध के राजाओं में से एक राजा यदु ने नागकन्याओं से विवाह किया था। इन नागरानियों से उन्हें चार पुत्र हुए। और इन्होंने ही आर्यावर्त के दक्षिण में चार राज्यों की नींव रखी। ये चार राज्य महिष्मती, सहयाद्रि, वनवासी और रत्नपुर थे।

महिषमति के नागों ने भैंस के दूध के प्रति रुचि को नाग को दूध पिलाने की परंपरा शुरू हुई। रत्नपुर कीमती रत्नों के लिए जाना जाता था जिससे नागों को नागमणि से जोड़ा गया। सहयाद्रि में चंदन के वृक्ष थे, अनेक सांप उनसे लिपटे रहते थे। इसलिए चंदन के वृक्ष से सांप के लिपटने के मिथक को तैयार किया गया।

वनवासियों ने सर्वप्रथम नाग वंश के नागों को चित्रित करके पूजना शुरू किया था। महिष्मति के सर्व वायुभक्षी थे। और इनके अधिपति थे कार्कोटक नाग कहलाए। इस तरह कार्कोटक नाग वंश की परंपरा विकसित हुई। कार्कोटक एक उपाधि थी। जो सैकड़ों वर्षों तक रही।

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