मिस्त्र का पहला व्यक्ति जिसने देवत्व को पहचाना

egypt-civilization_30_01_2016-300x225प्राचीन मिस्त्र के साम्राज्यवादी युग में ‘अमेनहोतेप’ चतुर्थ जिसे ‘अखातन’ भी कहा जाता है ने एटन (सूर्य) नाम से एक देवता की पूजा शुरू की थी। इस तरह मिस्त्र में एकेश्वरवादी विचारधारा को बल मिला।

‘फरोआ अखातन’ ने मिस्त्र के परम्परावादी धर्म में क्रांतिकारी परिवर्तन किए। उसने सूर्य(एटन) को समूचे विश्व का एकमात्र देवता घोषित कर दिया, वह अपने भाषणों में कहा करता था कि सूर्य निराकार है। ‘एटन’ की मूर्ति बनाना संभव नहीं है। वह दयालु है इसलिए एटन की शाम को पूजा करनी चाहिए।

अखातन ने लोगों से कहा, कि एटन (सूर्य) दिखावे और भेंट से प्रसन्न नहीं होगा, वह मनुष्य के नैतिक आचरण से प्रसन्न होंगे। अखातन स्वयं इस धर्म का प्रधान पुरोहित, प्रवक्ता और दार्शनिक बना।उसने उस समय मौजूद तमाम अंधविश्वास, दैत्य, देवी-देवता, प्रेत-पिशाच, स्वर्ग-नर्क और तमाम कल्पित कहानियों को अस्वीकार किया। उसने घोषणा कि आत्मा अमर है। अखातन ने सभी देवी-देवताओं के मंदिरों को बंद करवा दिया।

इतिहासकार आर्थर वोगाल ने अखातन के बारे में लिखा है कि वह इस धरती पर पहला व्यक्ति था जिसने देवत्व का अर्थ सही रूप में समझा।

अखातन का धर्म उसके जीवनकाल के साथ ही समाप्त हो गया। उसके दामाद और उत्ताराधिकारी फरोआ तूतनखामेन ने पुराने धर्म को पुनः प्रतिस्थापित किया। लोगों ने भी अखातन को सनकी और मूर्ख माना और उसकी निंदा करते रहे। हुआ यूं कि वो अखातन के विचारों का सही मूल्यांकन नहीं कर पाए।

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