इस जगह रख दिया था हनुमान ने संजीवनी बूटी का पहाड़, आज भी है मौजूद

जीवन के हर पड़ाव पर साथ देने वाले श्रीराम के भाई लक्ष्मण युद्धभूमि पर मूर्च्छित पड़े थे. युद्ध भूमि पर प्रभु श्रीराम के खेमे में शोक और शांति छाई हुई थी. प्रभु श्रीराम अपने भाई की मरणासन्न दशा देखकर लगातार आंसू बहाए जा रहे थे. तभी विभीषण ने सूरसेन नामक वैध को बुलाने का परामर्श दिया. सूरसेन को बुलाने पर उन्होंने हिमालय पर्वत की गोद में ऐसी जड़ी-बूटी लाने का सुझाव दिया जिससे लक्ष्मण के प्राणों की रक्षा की जा सकती थी. अपने प्रभु श्रीराम के दुख का निवारण करने के लिए पवनपुत्र हनुमान चल दिए संजीवनी बूटी की खोज में.

‘रहुमाशाला कांडा’ ही है द्रोणागिरी पर्वत

श्रीलंका के सुदूर इलाके में मौजूद ‘श्रीपद’ नाम की जगह पर स्थित पहाड़ ही, वह जगह है जो द्रोणागिरी का एक टुकड़ा था और जिसे उठाकर हनुमानजी ले गए थे. इस जगह को ‘एडम्स पीक’ भी कहते हैं. श्रीलंका के दक्षिणी तट गाले में एक बहुत रोमांचित करने वाली इस पहाड़ को श्रीलंकाई लोग रहुमाशाला कांडा कहते हैं. हालांकि कुछ लोग कहते हैं कि वह द्रोणागिरी का पहाड़ था. द्रोणागिरी हिमालय में स्थित था.

 

पौराणिक है द्रोणागिरी पर्वत का इतिहास

रहुमाशाला कांडा पहाड़ का अपना पौराणिक इतिहास रहा है. मेघनाद द्वारा वार करने पर लक्ष्मण मूर्छित होकर मरणासन्न हो गए थे. उनकी जान बचाने के लिए संजीवनी बूटी की जरूरत पड़ी तो बूटी को लाने का काम रामभक्त हनुमान को दिया गया. हनुमान हिमालय की कंदराओं में संजीवनी बूटी खोजते रहे, लेकिन उन्हें संजीवनी बूटी की पहचान नहीं थी, तो वह द्रोणागिरी पहाड़ के एक टुकड़े को ही ले आए. मान्यताओं के अनुसार यह वहीं पहाड़ है.

हनुमान ने यहां छोड़ दिया था पर्वत

ऐसा माना जाता है कि जब संजीवनी बूटी द्वारा लक्ष्मण की जान बचा ली गई, तब हनुमान द्वारा लाए गए पहाड़ को वापस उसी जगह रख देने का सुझाव दिया गया. लेकिन युद्ध अभी चरम सीमा पर था, इस कारण से हनुमान उस संजीवनी बूटी वाले पर्वत के टुकड़े को पुन: हिमालय में नहीं रखकर आए. ऐसी मान्यता है कि कर्नाटक के दक्षिण-कन्नड़ बार्डर कहे जाने वाले पश्चिमी घाट पर पर्वत का ये टुकड़ा अभी भी स्थित है…

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