जानिए कब खाए राम ने शबरी के जूठे बेर

सावन का आखरी सोमवार होने के कारण मंदिर में सुन्दर काण्ड का कार्यकर्म रखा गया , कार्यकर्म के समापन होने से पहले पंडित जी प्रवचन सुनाने ।

प्रवचन के दौरान उन्होंने बड़े जोर देके कहा की ‘ श्री राम’ ने शबरी के जूठे बेर खाए और शुद्र से भेद नहीं रखा। यह सुन के मैं सोच में पड़ गया की राम जी ने कब कौन सी रामायण में शबरी के जूठे बेर खा लिए ? किस रामायण में लिखा है ?

वैसे तो कई रामायण हैं पर हिन्दू समाज में मुख्य रूप से दो ही रामायण पर ज्यादा यकीन किया जाता है। एक वाल्मीकि रामायण तो दूसरा तुलसी दास जी की राम चरित्र मानस,इन दोनों को ही मैंने अपनी शंका मिटाने के लिए चेक किया परन्तु मुझे किसी रामायण में कंही नहीं लिखा मिला की राम जी ने शुद्र शबरी के जूठे बेर खाए हों।

शबरी की कथा वाल्मीकि रामायण के सर्ग नम्बर 74 में आया हुआ है , जब राम जी सीता की खोज करते हुए पाम्पा सरोवर के निकट मतंगवन में जाते हैं ,वंहा उन्हें एक आश्रम में शबरी मिलती है जो उनका आदर सत्कार करती है ।

शबरी राम और लक्ष्मण को वन से संचित किये हुए कंद मूल और फल तो भेंट करती है परन्तु ‘जूठे’ बेर नहीं खिलाती। स्मरण रहे की शुद्र के हाथ से तोड़े गए फल आदि खाने में कोई दोष नहीं है । हाँ,यह माना जा सकता था की यदि राम जी शबरी के हाथो से बना भोजन कर लेते तो शायद पंडित जी की बात सही लग सकती , पर यंहा राम जी ने केवल फल खाए जो दूसरी जगह से लाये गए थे।

अब देखते हैं तुलसी दास जी ‘ मानस’ , इसमें भी कंही नहीं लिखा है की राम जी ने शबरी के ‘जूठे बेर खाए थे। तुलसी दास जी कहते हैं- ‘कन्द मूल फल सरस आति ,दिए राम कह आनि प्रेम सहित प्रभु खयेऊ, बारही बार बखानी’ (अरण्य काण्ड) अर्थात शबरी ने बहुत रसीले कन्द,मूल, फल ल कर राम को दिए,उन्होंने स्वाद बखान कर प्रेम के साथ खाया। अब बताइए की इसमें राम जी ने जूठे बेर कंहा खाए? यंहा जूठे बेर देने का संकेत तक नहीं है ।

दरअसल चाहे राम हों या कृष्ण इन्होने कभी जातिवाद के खिलाफ आवाज उठाई ही नहीं थी बल्कि कंही न कंही इसका समर्थन ही किया था । जातिबंधन के इतने कठोर नियम थे की स्वयं भगवान् भी उन्हें नहीं तोड़ सकते थे ।

दयानद जी ने अपनी पुस्तक ‘ सत्यार्थ प्रकाश’ के दशम समुल्लास में कहा है की ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य ,शुद्र के घर का बना भोजन हुआ आपातकालीन समय में ही खाए वर्ना नहीं।

हो सकता है की पंडित जी का आशय जातिवाद कम करने का हो परन्तु क्या झूठ बोल के जातिवाद कम किया जा सकता है? यदि ऐसा हो भी जाये तो क्या वह परिवर्तन समाज में स्थाई होगा?

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