यहाँ जानिए उत्पन्ना एकादशी की पौराणिक कथा

आप सभी जानते ही होंगे कि अगहन यानी मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की एकादशी को उत्पन्ना एकादशी के नाम से जानते है. ऐसे में इस साल यह दिन सोमवार, 3 दिसंबर 2018 को आ रहा है. कहते हैं इस व्रत को वैतरणी एकादशी भी कहा जाता है, क्योंकि इस दिन देवी एकादशी का जन्म हुआ था. मान्यता है कि वैतरणी एकादशी को व्रत-उपवास रखने से शीघ्र ही सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और सब कुछ मिलता है. ऐसे में पुराणों के अनुसार अगहन मास भगवान कृष्‍ण और विष्णु की भक्ति का मास है और इस दिन श्रीविष्णु के शरीर से माता एकादशी उत्पन्न हुई थी अत: इस दिन कथा श्रवण का विशेष महत्व माना गया है. कहते हैं हेमंत ऋतु में आने वाली इस एकादशी को उत्पत्तिका, उत्पन्ना और वैतरणी एकादशी के नाम से जाना जाता है. तो आइए जानते हैं वैतरणी एकादशी यानी उत्पन्ना एकादशी की कथा.

उत्पन्ना एकादशी की कथा – वैतरणी एकादशी की इस कथा के अनुसार सतयुग में एक मुर नामक दैत्य था जिसने इन्द्र सहित सभी देवताओं को जीत लिया.भयभीत देवता भगवान शिव से मिले तो शिवजी ने देवताओं को श्रीहरि विष्‍णु के पास जाने को कहा. क्षीरसागर के जल में शयन कर रहे श्रीहरि इन्द्र सहित सभी देवताओं की प्रार्थना पर उठे और मुर दैत्य को मारने चन्द्रावतीपुरी नगर गए.सुदर्शन चक्र से उन्होंने अनगिनत दैत्यों का वध किया.

फिर वे बद्रिका आश्रम की सिंहावती नामक 12 योजन लंबी गुफा में सो गए.मुर ने उन्हें जैसे ही मारने का विचार किया, वैसे ही श्रीहरि विष्‍णु के शरीर से एक कन्या निकली और उसने मुर दैत्य का वध कर दिया. जागने पर श्रीहरि को उस कन्या ने, जिसका नाम एकादशी था, बताया कि मुर को श्रीहरि के आशीर्वाद से उसने ही मारा है. खुश होकर श्रीहरि ने एकादशी को सभी तीर्थों में प्रधान होने का वरदान दिया.

इस तरह श्रीविष्णु के शरीर से माता एकादशी के उत्पन्न होने की यह कथा पुराणों में वर्णित है. इस एकादशी के दिन त्रिस्पृशा यानी कि जिसमें एकादशी, द्वादशी और त्रयोदशी तिथि भी हो, वह बड़ी शुभ मानी जाती है.इस दिन एकादशी का व्रत रखने से एक सौ एकादशी व्रत करने का फल मिलता है.

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