महाभारत के अनुसार शत्रु को चारों खाने चित्त कर देता है यह तरीका

प्रत्येक इंसान के मित्र और शस्त्रु होते हैं। प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों की प्रकार के शत्रु से बचने के महाभारत में कई तरीके बताए गए हैं। लेकिन हम आपको कुछ अलग ही बताना चाहते हैं। इंसान का दूसरे इंसान से आपसी टकराव, संघर्ष और कलह होने के कुछ कारण हैं। उनमें से पहला यह है कि उनके भीतर साहस, अनुशासन और संयम की जगह ईर्ष्या, द्वेष और क्रोध होता है। इसी कारण मनचाहे लक्ष्य को पाना मुश्किल हो जाता है।व्यक्ति अपने लक्ष्य पर ध्यान देने के बजाय अपने प्रतिद्वंदी पर ज्यादा ध्यान देता है इसीलिए जीवन में हारता रहता है। अगर आप भी कामयाबी के ऊंचे मुकाम छूने की चाहत रखते हैं तो यहां बताया जा रहा है वह तरीका, जिसके आगे विरोधी भी नतमस्तक हो सकते हैं:-

हिन्दू इतिहस ग्रंथ ग्रंथ महाभारत में लिखा है:-प्राप्यापदं न व्यथते कदाचि-दुद्योगमन्विच्दति चाप्रमत्त:।दु:खं च काले सहते महात्माधुरन्धरस्तस्य जिता: सपत्ना:।।इसका अर्थ है कि विपरीत परिस्थिति या संकट के वक्त जो इंसान दु:खी होने के स्थान पर संयम और सावधानी के साथ पुरुषार्थ, मेहनत या परिश्रम को अपनाए और सहनशीलता के साथ कष्टों का सामना करे, तो उससे शत्रु या विरोधी भी हार जाते हैं। इसका सीधा सा मतलब है कि अगर जीवन में तमाम विरोध और मुश्किलों में भी मानसिक संतुलन और धैर्य न खोते हुए हमेशा सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ने का मजबूत इरादा रखें तो राह में आने वाले हर विरोध या रुकावट का अंत हो जाता है।दोस्त और दुश्मन की पहचान करना सीखें : महाभारत में कौन किसका दोस्त और कौन किसका दुश्मन था, यह कहना बहुत ज्यादा मुश्किल तो नहीं लेकिन ऐसे कई मित्र थे जिन्होंने अपनी ही सेना के साथ विश्वासघात किया। ऐसे भी कई लोग थे, जो ऐनवक्त पर पाला बदलकर कौरवों या पांडवों के साथ चले गए। शल्य और युयुत्सु इसके उदाहरण हैं।

इसीलिए कहते हैं कि कई बार दोस्त के भेष में दुश्मन हमारे साथ आ जाते हैं और हमसे कई तरह के राज लेते रहते हैं। कुछ ऐसे भी दोस्त होते हैं, जो दोनों तरफ होते हैं। ऐसे दोस्तों पर भी कतई भरोसा नहीं किया जा सकता इसलिए किसी पर भी आंख मूंदकर विश्वास नहीं करना चाहिए। अब आप ही सोचिए कि कौरवों का साथ दे रहे भीष्म, द्रोण और विदुर ने अंतत: युद्ध में पांडवों का ही साथ दिया। ये लोग लड़ाई तो कौरवों की तरफ से लड़ रहे थे लेकिन प्रशंसा पांडवों की करते थे और युद्ध जीतने के उपाय भी पांडवों को ही बताते थे।लड़ाई से डरने वाले मिट जाते हैं : जिंदगी एक उत्सव है, संघर्ष नहीं। लेकिन जीवन के कुछ मोर्चों पर व्यक्ति को लड़ने के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए। जो व्यक्ति लड़ना नहीं जानता, युद्ध उसी पर थोपा जाएगा या उसको सबसे पहले मारा जाएगा।

महाभारत में पांडवों को यह बात श्रीकृष्ण ने अच्‍छे से सिखाई थी। पांडव अपने बंधु-बांधवों से लड़ना नहीं चाहते थे, लेकिन श्रीकृष्ण ने समझाया कि जब किसी मसले का हल शांतिपूर्ण किसी भी तरीके से नहीं होता तो फिर युद्ध ही एकमात्र विकल्प बच जाता है। कायर लोग युद्ध से पीछे हटते हैं।इसीलिए अपनी चीज को हासिल करने के लिए कई बार युद्ध करना पड़ता है। अपने अधिकारों के लिए कई बार लड़ना पड़ता है। जो व्यक्ति हमेशा लड़ाई के लिए तैयार रहता है, लड़ाई उस पर कभी भी थोपी नहीं जाती है।

अच्छे दोस्तों की कद्र करो : ईमानदार और बिना शर्त समर्थन देने वाले दोस्त भी आपका जीवन बदल सकते हैं। पांडवों के पास भगवान श्रीकृष्ण थे तो कौरवों के पास महान योद्धा कर्ण थे। इन दोनों ने ही दोनों पक्षों को बिना शर्त अपना पूरा साथ और सहयोग दिया था। यदि कर्ण को छल से नहीं मारा जाता तो कौरवों की जीत तय थी।पांडवों ने हमेशा श्रीकृष्ण की बातों को ध्यान से सुना और उस पर अमल भी किया लेकिन दुर्योधन ने कर्ण को सिर्फ एक योद्धा समझकर उसका पांडवों की सेना के खिलाफ इस्तेमाल किया। यदि दुर्योधन कर्ण की बात मानकर कर्ण को घटोत्कच को मारने के लिए दबाव नहीं डालता, तो जो अमोघ अस्त्र कर्ण के पास था उससे अर्जुन मारा जाता।

अगर मित्रता करो तो उसे जरूर निभाओ, लेकिन मित्र होने का यह मतलब नहीं कि गलत काम में भी मित्र का साथ दो। अगर आपका मित्र कोई ऐसा कार्य करे जो नैतिक, संवैधानिक या किसी भी नजरिए से सही नहीं है तो उसे गलत राह छोड़ने के लिए कहना चाहिए।जिस व्यक्ति को हितैषी, सच बोलने वाला, विपत्ति में साथ निभाने वाला, गलत कदम से रोकने वाला मित्र मिल जाता है उसका जीवन सुखी है। जो उसकी नेक राय पर अमल करता है, उसका जीवन सफल होता है।

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