मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा तिथि को त्रिपुर भैरवी जयंती मनाई जाती है। इस साल यह 12 दिसंबर दिन गुरुवार को मनाई जाएगी। माता त्रिपुर भैरवी मां काली का स्वरूप हैं। आज के दिन विधि विधान से उनकी पूजा करने पर भक्तों के सभी कष्टों का निवारण हो जाता है। अगर उनमें अहंकार होता है तो उसका नाश होता है। जीवन में सफलता प्राप्त होती है और धन-संपदा की भी कमी नहीं रहती है। इनकी साधना करने से 16 कलाओं में निपुण पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है।
कौन हैं त्रिपुर भैरवी
माता त्रिपुर भैरवी मां काली का स्वरूप मानी जाती हैं। यह महाविद्या की छठी शक्ति मानी जाती हैं। त्रिपुर का अर्थ है तीनों लोक, और भैरवी का संबंध काल भैरव से है। भयानक स्वरूप और उग्र स्वाभाव वाले काल भैरव भगवान शिव के विकराल अवतार हैं, जिनका संबंध विनाश से होता है।
त्रिपुर भैरवी का स्वरूप
माता त्रिपुर भैरवी का स्वरूप मां काली से मिलता-जुलता है। माता की चार भुजाएं और तीन नेत्र हैं। उनके बाल खुले हुए रहते हैं। इनका दूसरा नाम षोडशी भी है। त्रिपुर भैरवी को रूद्र भैरवी, चैतन्य भैरवी, नित्य भैरवी, भद्र भैरवी, कौलेश भैरवी, श्मशान भैरवी, संपत प्रदा भैरवी आदि नामों भी जाना जाता है।
त्रिपुर भैरवी की उत्पत्ति की कथा
एक बार मां काली की इच्छा हुई की वह दोबारा अपना गौर वर्ण प्राप्त कर लें। यह सोचकर वह अपने स्थान से अंतर्धान हो गईं। मां काली को अपने पास न देखकर भगवान शिव चिंतित हो जाते हैं। तब वे देवऋषि नारद जी से उनके विषय में पूछते हैं। तब नारद जी कहते हैं कि माता के दर्शन सुमेरु के उत्तर में हो सकता है। शिवजी की आज्ञा से नारद जी सुमेरु के उत्तर में मां काली को खोजते हैं। जब वे मां के पास पहुंचते हैं तो उनके समक्ष शिवजी के विवाह का प्रस्ताव रखते हैं। इससे मां काली नाराज हो जाती हैं और उनके शरीर से षोडशी विग्रह प्रकट होता है। उससे छाया विग्रह त्रिपुर भैरवी प्रकट होती हैं।
Shree Ayodhya ji Shradhalu Seva Sansthan राम धाम दा पुरी सुहावन। लोक समस्त विदित अति पावन ।।