एक अध्ययन से इस बात का ख़ुलासा हुआ है कि शरद पूर्णिमा के दिन औषधियों की स्पंदन क्षमता में इजाफ़ा होता है. वहीं लंका के राजा रावण से भी इस रात्रि का विशेष संबंध था. रावण शरद पूनम की रात के दौरान अपनी नाभि पर चंद्र देव की किरणों को ग्रहण करता था और वह इसके लिए दर्पण का सहारा लेता था. ऐसा कहा जाता है कि रावण को इस प्रक्रिया के कारण पुनर्योवन शक्ति मिलती थी. 
शरद पूर्णिमा की रात्रि को लेकर कई तरह की मान्यताएं प्रचलित है. इसे लेकर ऐसा भी कहा जाता है कि इस रात्रि के दौरान 10 से 12 बजे के मध्य में कोई कम वस्त्रों में चन्द्रमा की रौशनी के मध्य घूमता है तो इससे उसे ऊर्जा प्रदान होती है.
दूध में केल्टिक एसिड और अमृत तत्व पाया जाता है और एक अध्ययन में इस बात की भी पुष्टि हुई है कि यह तत्व चंद्र देव की किरणों से ज्यादा शक्ति का शोषण करता है. जबकि खीर में चावल होने के साथ और चावल में स्टार्च होने से इस प्रक्रिया का काम और भी आसान हो जाता है. यहीं वजह है कि प्राचीन समय से चंद्र देव की किरणों में खीर रखीं जा रही है. शरद पूर्णिमा की रात्रि के दौरान इसका महत्व और भी बढ़ जाता है. बता दें कि धार्मिक दृष्टि के साथ ही इस प्रक्रिया का वैज्ञानिक महत्व भी है.
अध्ययन में इस बात का भी ख़ुलासा किया गया है कि चांदी के पात्र में खीर बनाना शुभ होता है. चांदी में प्रतिरोधकता अधिक मात्रा में रहती है. वहीं यह विषाणु दूर रखने में भी सक्षम है. जबकि इसे चंद्र की किरणों में रखते समय भी पात्र चांदी का ही होना चाहिए. या फिर आप मिट्टी या कांच के पात्र में भी खीर रख सकते हैं. लेकिन ध्यान रहें कि इन पात्रों के अलावा आपको अन्य कोई पात्र नहीं लेना है.
Shree Ayodhya ji Shradhalu Seva Sansthan राम धाम दा पुरी सुहावन। लोक समस्त विदित अति पावन ।।