आप सभी को बता दें कि इस बात लोहड़ी का पर्व 13 जनवरी को मनाया जाने वाला है. ऐसे में इस त्यौहार को पंजाबी समुदाय के लोग मनाते हैं और वह परिवार के सदस्यों के साथ लोहड़ी पूजन करते हैं. इस पर्व के 20-25 दिन पहले ही बच्चे ‘लोहड़ी’ के लोकगीत गा-गाकर लकड़ी और उपले इकट्ठे करते हैं और उसके बाद इकट्ठी की गई सामग्री को चौराहे/मुहले के किसी खुले स्थान पर आग जलाते हैं. कहते हैं इस उत्सव को पंजाबी समाज बहुत ही उमंग और उत्साह के साथ मनाते हैं. कहते हैं इस दिन गोबर के उपलों की माला बनाकर मन्नत पूरी होने की खुशी में लोहड़ी के समय जलती हुई अग्नि में उन्हें भेंट किया जाता है और इसे ‘चर्खा चढ़ाना’ के नाम से पुकराते हैं. इसी के साथ लोहड़ी का त्यौहार दुल्ला भट्टी की कहानी से जुड़ा हुआ है. आइए आपको बताते हैं वह कहानी.
पौराणिक कहानी के अनुसार – दुल्ला भट्टी बादशाह अकबर के शासनकाल के दौरान पंजाब में रहते थे और उन्होंने अमीरों और जमीदारों से धन लूटकर गरीबो में बांटने के अलावा, जबरन रूप से बेचीं जा रही हिंदू लड़कियों को मुक्त करवाया था. इसी के साथ ही उन्होंने हिंदू अनुष्ठानों के साथ उन सभी लडकियों की शादी हिंदू लड़कों से करवाने की व्यवस्था की और उन्हें दहेज भी प्रदान किया, जिस कारण से वह पंजाब के लोगो के नायक बन गए थे. यही कारण है कि आज भी लोहड़ी के गीतों में दुल्ला भट्टी का आभार व्यक्त करने के लिए उनका नाम जरुर लिया जाता हैं.
अन्य पौराणिक कहानी – कंस ने भगवान् श्री कृष्ण को मानने के लिए लोहिता नामक राक्षसी को भेजा जिसका वध कृष्ण ने खेल खेल में कर दिया. लोहिता के वध की ख़ुशी में लोगो द्वारा लोहड़ी का त्यौहार मनाया गया. लोहड़ी मनाने की मान्यता शिव और सती से भी जुड़ी है. कथा के अनुसार माता सती के आग में समर्पित होने के कारण लोहड़ी के दिन अग्नि जलाई जाती है.
Shree Ayodhya ji Shradhalu Seva Sansthan राम धाम दा पुरी सुहावन। लोक समस्त विदित अति पावन ।।