उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित चार धामों में से एक बद्रीनाथ धाम स्थित है जो मुख्य रूप से भगवान विष्णु को समर्पित माना गया है। इसे बद्रीनारायण मंदिर या बद्री विशाल चार धाम मंदिर भी कहा जाता है। न केवल भक्त बल्कि पर्यटक भी इसकी प्राकृतिक सुंदरता की ओर खींचे चले आते हैं। आज हम आपको इसी अद्भुत मंदिर का इतिहास बताने जा रहे हैं।
बद्रीनाथ धाम के कपाट भक्तों के लिए 04 मई 2025 को खुलेंगे। गढ़वाल की पहाड़ियों में स्थित बद्रीनाथ धाम (Badrinath Dham) और हिमालय और अलकनंदा नदी से घिरा हुआ है। इस धाम के आस-पास की प्राकृतिक सुंदरता किसी का भी मन मोहने के लिए काफी है। इस स्थान की महिमा का वर्णन स्कंद पुराण में भी किया गया है।
क्या है मान्यता
बद्रीनाथ धाम को लेकर यह मान्यता प्रचलित है कि भगवान विष्णु इस स्थान पर 6 माह के लिए विश्राम करते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, महाभारत युद्ध की समाप्ति के बाद बद्रीनाथ मंदिर पांडवों की यात्रा का एक पड़ाव भी रहा है।
यहां एक प्राकृतिक गर्म झरना भी है, जिसे तपता कुंड या तप्त कुंड के रूप में जाना जाता है। कहा जाता है कि भगवान शिव इस तप्त कुंड के रूप में यहां मौजूद हैं। मंदिर के दर्शन करने से पहले इस कुंड में डुबकी लगाने की मान्यता है।
किसने की स्थापना
वर्तमान बद्रीनाथ मंदिर की नींव 8वीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य ने रखी थी। आदि शंकराचार्य को अलकनंदा नदी में भगवान बद्रीनारायण की काले पत्थर की मूर्ति प्राप्त हुई, जिसे उन्होंने तप्त कुंड के पास गुफा में स्थापित कर दिया। आदि शंकराचार्य को मुख्य रूप से बद्रीनाथ धाम समेत हिंदू धर्म के चार धामों सहित अन्य कई हिंदू तीर्थ स्थलों को पुनर्जीवित करने और उनकी स्थापित करने के लिए जाना जाता है।
मंदिर का इतिहास (Badrinath Temple history)
बद्रीनाथ तीर्थ के नाम (Badrinath Dham name origin) को लेकर भी एक रोचक कथा मिलती है। बद्रीनाथ नाम एक स्थानीय शब्द बदरी से लिया गया है, जो एक प्रकार की जंगली बेरी है। कथा के अनुसार, जब एक बार भगवान विष्णु यहां स्थित पहाड़ों में तपस्या में कर रहे थे, तब उनकी पत्नी अर्थात देवी लक्ष्मी ने उन्हें कड़ी धूप से बचाने के लिए एक बेरी के पेड़ का रूप धारण कर लिया। इसलिए इस स्थान को बद्रीनाथ नाम दिया गया।
पुराणों में मिलती है महिमा
वामन पुराण के अनुसार, भगवान विष्णु के अवतार नर और नारायण ऋषियों ने इसी स्थान पर तपस्या की थी। इसी के साथ कपिल मुनि, गौतम और कश्यप जैसे महान ऋषियों ने भी इस स्थान पर तपस्या की थी। साथ ही भगवान विष्णु के परम भक्त देवर्षि नारद को इसी स्थान पर मोक्ष की प्राप्ति हुई थी।
Shree Ayodhya ji Shradhalu Seva Sansthan राम धाम दा पुरी सुहावन। लोक समस्त विदित अति पावन ।।