रवि प्रदोष व्रत  पर पूजा के समय करें इस स्तोत्र का पाठ, चमक उठेगी फूटी किस्मत

वैदिक पंचांग के अनुसार, 08 जून को रवि प्रदोष व्रत है। यह व्रत देवों के देव महादेव को पूर्णतया समर्पित होता है। अतः प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव और मां पार्वती की भक्ति भाव से पूजा की जाती है। साथ ही मनचाहा वरदान पाने के लिए व्रत रखा जाता है।

धार्मिक मत है कि भगवान शिव की पूजा करने से साधक की हर एक मनोकामना पूरी होती है। साथ ही जीवन में व्याप्त संकटों से मुक्ति मिलती है। साधक त्रयोदशी तिथि पर पूजा के समय भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं। भगवान शिव जलाभिषेक से प्रसन्न होते हैं। अगर आप भी भगवान शिव की कृपा पाना चाहते हैं, तो प्रदोष व्रत पर भक्ति भाव से शिव-शक्ति की पूजा करें। साथ ही पूजा के समय महादेव का जलाभिषेक करें। इस समय दारिद्र्य दहन शिव स्तोत्र स्तोत्र का पाठ अवश्य करें।

दारिद्र्य दहन शिव स्तोत्र
विश्वेश्वराय नरकार्णवतारणाय कर्णामृताय शशिशेखरधारणाय ।

कर्पूरकान्तिधवलाय जटाधराय दारिद्‌र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय ॥

गौरीप्रियाय रजनीशकलाधराय कालान्तकाय भुजगाधिपकङ्कणाय ।

गङ्गाधराय गजराजविमर्दनाय दारिद्‌र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय ॥

भक्तप्रियाय भवरोगभयापहाय उग्राय दुर्गभवसागरतारणाय ।

ज्योतिर्मयाय गुणनामसुकृत्यकाय दारिद्‌र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय ॥

चर्मांबराय शवभस्मविलेपनाय भालेक्षणाय मणिकुण्डलमण्डिताय ।

मंजीरपादयुगलाय जटाधराय दारिद्‌र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय ॥

पञ्चाननाय फणिराजविभूषणाय हेमांशुकाय भुवनत्रय मण्डिताय ।

आनन्दभूमिवरदाय तमोमयाय दारिद्‌र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय ॥

गौरीविलासभवनाय महेश्वराय पञ्चाननाय शरणागतकल्पकाय ।

शर्वाय सर्वजगतामधिपाय तस्मै दारिद्‌र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय ॥

भानुप्रियाय भवसागरतारणाय कालान्तकाय कमलासनपूजिताय ।

नेत्रत्रयाय शुभलक्षणलक्षिताय दारिद्‌र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय ॥

रामप्रियाय राघुनाथवरप्रदाय नागप्रियाय नरकार्णवतारणाय ।

पुण्येषु पुण्यभरिताय सुरार्चिताय दारिद्‌र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय ॥

मुक्तेश्वराय फलदाय गणेश्वराय गीतप्रियाय वृषभेश्वरवाहनाय ।

मातङ्गचर्मवसनाय महेश्वराय दारिद्‌र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय ॥

वसिष्ठेनकृतं स्तोत्रं सर्व दारिद्‌र्यनाशनम् ।

सर्वसंपत्करं शीघ्रं पुत्रपौत्रादिवर्धनम् ॥

॥ शिव मानस पूजा स्तोत्रम् ॥

रत्नैः कल्पितमासनं हिमजलैः स्नानं च दिव्याम्बरं

नानारत्नविभूषितं मृगमदामोदाङ्कितं चन्दनम्।

जातीचम्पकबिल्वपत्ररचितं पुष्पं च धूपं तथा

दीपं देव दयानिधे पशुपते हृत्कल्पितं गृह्यताम्॥

सौवर्णे नवरत्नखण्डरचिते पात्रे घृतं पायसं

भक्ष्यं पञ्चविधं पयोदधियुतं रम्भाफलं पानकम्।

शाकानामयुतं जलं रुचिकरं कर्पूरखण्डोज्ज्वलं

ताम्बूलं मनसा मया विरचितं भक्त्या प्रभो स्वीकुरु॥

छत्रं चामरयोर्युगं व्यजनकं चादर्शकं निर्मलं

वीणाभेरिमृदङ्गकाहलकला गीतं च नृत्यं तथा।

साष्टाङ्गं प्रणतिः स्तुतिर्बहुविधा ह्येतत्समस्तं मया

सङ्कल्पेन समर्पितं तव विभो पूजां गृहाण प्रभो॥

आत्मा त्वं गिरिजा मतिः सहचराः प्राणाः शरीरं गृहं

पूजा ते विषयोपभोगरचना निद्रा समाधिस्थितिः।

सञ्चारः पदयोः प्रदक्षिणविधिः स्तोत्राणि सर्वा गिरो

यद्यत्कर्म करोमि तत्तदखिलं शम्भो तवाराधनम्॥

करचरणकृतं वाक्कायजं कर्मजं वा।

श्रवणनयनजं वा मानसं वापराधम्।

विदितमविदितं वा सर्वमेतत्क्षमस्व।

जय जय करुणाब्धे श्रीमहादेवशम्भो॥

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