हल षष्ठी व्रत पर करें इस कथा का पाठ

हल षष्ठी व्रत को बहुत शुभ माना जाता है। यह भगवान बलराम को समर्पित है। हर साल यह तिथि भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी को मनाई जाती है। इस दिन व्रत और पूजा का बड़ा महत्व है। वहीं इस तिथि की कथा का पाठ बेहद कल्याणकारी माना गया है तो आइए यहां पढ़ते हैं।

हल षष्ठी, जिसे ‘ललही षष्ठ’ या ‘हर छठ’ के नाम से भी जाना जाता है। यह श्रीकृष्ण के बड़े भाई भगवान बलराम को समर्पित है। यह हर साल भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाई जाती है। इस साल यह 14 अगस्त 2025 यानी आज के दिन मनाई जा रही है। यह पर्व भगवान बलराम के जन्म का प्रतीक है, जिसे लोग श्रद्धा भाव के साथ मनाते हैं। यह तिथि सावन पूर्णिमा के छह दिन बाद पड़ती है।

इस दिन लोग व्रत रखते हैं और पूजा-अर्चना करते हैं। माना जाता है कि इस दिन की पूजा तब तक अधूरी रहती है, जब तक इसकी कथा का पाठ न किया जाए, तो आइए यहां पढ़ते हैं।

हल षष्ठी व्रत की कथा

एक समय की बात है, एक ग्वालिन थी जो गर्भवती थी और उसकी प्रसव की तारीख नजदीक थी। एक तरफ वह प्रसव पीड़ा से तड़प रही थी, वहीं दूसरी ओर उसका मन अपनी गाय-भैंस का दूध-दही बेचने में लगा हुआ था। उसने सोचा, ‘अगर मैं अभी प्रसव के लिए रुक गई, तो यह सारा दूध-दही खराब हो जाएगा।’ यह सोचकर, वह तुरंत उठी और दूध-दही की मटकी सिर पर रखकर बेचने निकल पड़ी। रास्ते में, जब प्रसव पीड़ा असहनीय हो गई, तो वह एक झाड़ी के पीछे गई और वहीं उसने एक बेटे को जन्म दिया। बच्चे के जन्म के बाद भी उसका ध्यान दूध-दही बेचने पर ही था। उसने बच्चे को कपड़े में लपेटा और वहीं छोड़कर चली गई। यह भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि का दिन था, जिसे हल षष्ठी भी कहते हैं। ग्वालिन ने गाय और भैंस के मिले हुए दूध को पूरे गांव में सिर्फ भैंस का दूध बताकर बेच दिया।

उधर, जिस झाड़ी के पास उसने बच्चे को छोड़ा था, वहीं पास में एक किसान हल चला रहा था। अचानक उसके बैल भड़क गए और हल का फल बच्चे के शरीर में लग गया, जिससे उसकी मौत हो गई। किसान यह देखकर बहुत दुखी हुआ। उसने हिम्मत करके झाड़ी के कांटों से ही बच्चे के घावों पर टांके लगाए और उसे वहीं छोड़कर चला गया। जब ग्वालिन सारा दूध-दही बेचकर वापस आई, तो उसने अपने बच्चे को मरा हुआ पाया। यह देखकर वह समझ गई कि यह सब उसके ही पापों का फल है। वह मन ही मन पछताने लगी। इसके बाद उसने गांव वालों को पूरी सच्चाई बताकर प्रायश्चित करने का फैसला किया।

वह तुरंत गांव की महिलाओं के पास गई और उन्हें पूरी बात बताकर माफी मांगने लगी। उसने अपने कर्मों और उसके बदले मिले दंड के बारे में बताया। गांव की महिलाओं को उस पर दया आ गई और उन्होंने उसे माफ करके आशीर्वाद दिया, जब ग्वालिन वापस उस झाड़ी के पास पहुंची, तो उसने देखा कि उसका बच्चा जीवित है। वह हैरान रह गई। उसने भगवान का धन्यवाद किया और भविष्य में कभी झूठ न बोलने का प्रण लिया।

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