धार्मिक मान्यता के अनुसार पितृ पक्ष की अवधि पितरों को समर्पित है। इस दौरान पितरों का तर्पण और श्राद्ध किया जाता है। इससे पूर्वज प्रसन्न होते हैं और पितृ दोष की समस्या से छुटकारा मिलता है। ऐसे में चलिए जानते हैं कि पितृ मुक्ति के उपाय के बारे में।
वैदिक पंचांग के अनुसार, पितृ पक्ष की शुरुआत भाद्रपद पूर्णिमा से होती है, जिसका समापन आश्विन माह की अमावस्या तिथि पर होता है। पितृ पक्ष को पूर्वजों को प्रसन्न और उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए खास माना जाता है।
धार्मिक मान्यता के अनुसार, पितृ पक्ष में पितरों का तर्पण और श्राद्ध करने से पूर्वजों की कृपा से जीवन में आने वाले सभी दुख-संकट दूर होते हैं और पितृ प्रसन्न होते हैं। इस बार पितृ पक्ष की शुरुआत 07 सितंबर से होगी और समापन अगले महीने यानी 21 सितंबर को होगा।
ऐसा माना जाता है कि पितृ दोष की वजह से इंसान को जीवन में कई तरह की समस्या का सामना करना पड़ता है। ऐसे में चलिए जानते हैं कि पितृ पक्ष में कैसे पाएं पितृ दोष से छुटकारा।
पितृ होंगे प्रसन्न
अगर आप पितृ दोष का सामना कर रहे हैं, तो इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए पितृ पक्ष को उत्तम माना गया है। इस अवधि के दौरान पूर्वजों का तर्पण, पिंडदान, और श्राद्ध कर्म करना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि इस उपाय को करने से पितरों की नाराजगी दूर होती है और पितृ प्रसन्न होते हैं।
पितृ की कृपा होगी प्राप्त
सनातन धर्म में पीपल के पेड़ की पूजा करने का विशेष महत्व है। इस पेड़ में पितरों का वास होता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, पितृ पक्ष में पीपल के पेड़ पास दीपक में काले तिल डालकर जलाएं और पेड़ की परिक्रमा लगाएं। इस उपाय को करने से पितृ प्रसन्न होते हैं और उनकी कृपा प्राप्त होती है। साथ ही पितृ दोष से मुक्ति मिलेगी।
जीवन में बनी रहेगी सुख-समृद्धि
वास्तु शास्त्र के अनुसार, दक्षिण दिशा को पितरों को मानी जाती है। इस दिशा में पितृ पक्ष में रोजाना दीपक जलाना चाहिए। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस उपाय को करने से पितृ दोष से मुक्ति मिलती है और उनकी कृपा से जीवन में सुख-समृद्धि बनी रहती है।
पितृ के मंत्र
ॐ पितृ देवतायै नम:।
ॐ आगच्छन्तु में पितर एवं ग्रहन्तु जलान्जलिम’
ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय च धीमहि तन्नो रुद्र: प्रचोदयात।
ॐ पितृगणाय विद्महे जगत धारिणी धीमहि तन्नो पितृो प्रचोदयात्।
ॐ देवताभ्य: पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च
नम: स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव नमो नम: