श्री श्री रविशंकर प्रेम के संदर्भ में कहते हैं कि प्रेम तो ऐसी दवा है जिसकी कोई एक्सपायरी डेट नहीं होती। यह हमेशा हर मौके पर कारगर होती है। प्रेम की दवा को अपना साथी बनाना बहुत सरल है। जिसे व्यक्ति को बाजार से नहीं खरीदना पड़ता।
वह दवा प्रत्येक व्यक्ति के पास है और उसके सहारे वह हर बड़ी से बड़ी बीमारी व समस्या को दूर कर सकता है। वह दवा प्रेम है। प्रेम इंसान के अंदर की एक ऐसी भावना है, जो उस समय बढ़ती है, जब व्यक्ति किसी से गहराई से जुड़ता है। जब व्यक्ति सकारात्मक भावों के साथ इनसे प्रेम करता है, तो जिंदगी बेहद खूबसूरत हो जाती है।
लेखक डॉ जेनव अपनी पुस्तक ‘द बॉयोलॉजी ऑफ लव’ में लिखते हैं कि, ‘मनुष्य एक संवेदनशील जीव है, इसलिए प्रेम जैसी भावना की कमी उसके विकास और जीने की क्षमता को कमजोर कर सकती है। मनोवैज्ञानिक प्रेम को मनुष्य के अंतर्मन में मौजूद सबसे मजबूत और सकारात्मक संवेदना के रूप में देखते हैं और मानते हैं।
इससे शरीर में गहरे बदलाव आते हैं। जिस तरह दवा रसायनों के मिश्रण से बनती है, उसी तरह प्रेम की दवा में भी रसायनों का ही हाथ है।
अमेरिका के वैज्ञानिक रॉबर्ट फ्रेयर के अनुसार प्रेम मानव शरीर में उपस्थित न्यूरो-केमिकल के कारण होता है। यह न्यूरो-केमिकल व्यक्ति को प्रेम की गहनता तक ले जाता है और व्यक्ति को उन खुशियों तक पहुंचाता है, जिन्हें वह पाना चाहता है। अक्सर व्यक्ति को बीमारी, तनाव व डिप्रेशन के समय परिवार के साथ समय बिताने, प्रकृति को निहारने, प्रेरणादायक पुस्तक पढ़ने और मधुर संगीत सुनने की सलाह दी जाती है। इसके पीछे मनोवैज्ञानिक तर्क यही है कि ये सब प्रेम के रूप हैं और व्यक्ति के लिए दवा का काम करते हैं।
इसके लिए व्यक्ति को बस अपने अंतर्मन से इस बात को स्वीकार करना है कि मुझे पूरी सृष्टि से प्रेम है। मुझे हंसते-रोते इंसानों से, फूल-पत्तों से, गुनगुनी सुबह से, सुरमयी शाम से और चिड़ियों के कोलाहल से, नदियों के राग से प्रेम है।
प्रेम एक ऐसी दवा है, जो जिसके पास जितनी अधिक होती है, उसे यह उतनी अधिक स्वस्थ, सुंदर और हंसमुख बनाती है। कई बार व्यक्ति जब दवा का सेवन करता है, तो उसे कई खाद्य पदार्थो व वस्तुओं से परहेज करना पड़ता है, लेकिन प्रेम की दवा में ऐसा बिल्कुल नहीं है।
Shree Ayodhya ji Shradhalu Seva Sansthan राम धाम दा पुरी सुहावन। लोक समस्त विदित अति पावन ।।