कथा: जब अपने ही भक्त के विरुद्ध शिव ने उठा लिया था अस्त्र

phpThumb_generated_thumbnail-2-15-300x214अमरकंटक। नर्मदा का उद्गम स्थल अमरकंटक प्राचीन तीर्थस्थल है। मध्यप्रदेश के इस नगर से अनेक पौराणिक गाथाएं जुड़ी हैं। यहां ज्वालेश्वर महादेव को अत्यंत चमत्कारी माना जाता है। श्रद्धालुओं की मान्यता है कि यहां सच्चे मन से की गई प्रार्थना शीघ्र ही शुभ फल देती है।
यहां स्थापित बाणलिंग की कथा भी कम चमत्कारी नहीं है। इस पर दुग्ध एवं शीतल जल अर्पित करने से भक्त के जीवन में आने वाले समस्त पाप, दोष और दुखों का नाश हो जाता है।
कथा के अनुसार, बली का पुत्र बाणासुर अत्यंत बलशाली था, परंतु शिव का बहुत बड़ा भक्त भी था। उसकी सहस्त्र भुजाएं थीं। संसार भर में वह सर्वाधिक बलशाली हो गया। बाणासुर ने एक सहस्त्र दिव्य वर्षों तक भगवान शंकर की तपस्या की। उसकी तपस्या से संतुष्ट होकर भगवान शिव ने उसे वर मांगने को कहा। 
  
बाणासुर ने वर मांगा, मेरा नगर दिव्य और अजेय हो। आपको छोड़कर कोई और इस नगर में नहीं आ सके। मेरे स्थित रहने पर मेरा नगर स्थित रहे और मेरे चलने पर मेरे साथ-साथ चले।
 
शिव ने तथास्तु कहते हुए उसे यह वर दे दिया। बाणासुर ने बाद में ब्रह्मा और विष्णु से भी इसी तरह के नगर यानी पुर के लिए वर प्राप्त कर लिया। तीन पुर का स्वामी होने के कारण वह त्रिपुर कहलाया। वर पाकर बाणासुर और भी शक्तिशाली हो गया और अपनी शक्ति के घंमड में उसने यक्ष, गंधर्व और राक्षसों के सभी निवास स्थानों को ध्वस्त कर दिया। 
 
तीनों लोको में उसका भय व्याप्त हो गया। उससे भयभीत सभी देवता आखिरकार शिव के पास पहुंच अपने प्राणों की रक्षा के लिए प्रार्थना करने लगे। शिव को बहुत क्रोध आया। उन्होंने पिनाक नामक धुनष हाथ में लेकर बाणासुर को लक्ष्य कर अघोर नाम के बाण का प्रहार किया। 
त्रिपुर यानी बाणासुर का सिंहासन हिल उठा। उसके समझ में आ गया कि शिव के छोड़े बाण से उसका जल जाना निश्चित है। इसलिए उसने अपने पूज्य शिवलिंग को अपने सिर पर धारण कर लिया। देवाधिदेव महादेव की स्तुति करते हुए उसने अपनी पुरी का त्याग कर कहा, मैं वध करने योग्य हूं पर मेरी विनती है मेरा यह लिंग नष्ट न हो। मैंने सदा इसकी पूर्ण भक्ति से पूजा की है।  
बाणासुर ने तोटक-छंद से भगवान शिव की स्तुति की। शिव प्रसन्न हो गए। उनके द्वारा छोड़े बाण से बाणासुर के त्रिपुर के तीन खंड हो गए। उसे जर्जर कर भगवान शिव ने उन्हें नर्मदा के जल में गिरा दिया। गिरने के बाद तीनों पुर सात पाताल लोक को भेद कर रसातल में चले गए। 
 
इससे ही वहां ज्वालेश्वर नाम का तीर्थ प्रकट हुआ। भगवान शिव के छोड़े बाण से बचा हुआ ही यह शिवलिंग बाणलिंग कहलाया। श्रद्धा से जो इसकी पूजा करता है, जन्म-मरण के बंधनों से मुक्त हो जाता है।
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