महर्षि वाल्मीकि जी के अनुसार हनुमान जी की पहली मुलाकात अपने आराध्य श्रीराम से किष्किंधा के वन में हुई थी। यह प्रसंग तुलसीदास जी द्वारा भी रामचरित मानस में जोड़ा गया है, इस महान ग्रंथ को ‘किष्किंधाकाण्ड’ के नाम से जाना जाता है।
यह तब की बात है जब वानर सुग्रीव अपने बड़े भाई बालि के प्रकोप से डरकर अपने मित्र हनुमान की शरण में आते हैं और उनसे छिपने के लिए सहायता मांगते हैं। इसी दौरान सुग्रीव को वन की ओर से दो पुरुषों को आते हुए देखते हैं, उन्होंने सादे वस्त्र पहने थे किंतु शस्त्र धारण किए हुए थे। सुग्रीव के मन में भय प्रकट हुआ। उन्हें लगा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि ये भाई बालि के भेजे हुए गुप्त सैनिक हो सकते हैं जो उनकी हत्या के लिए भेजे गए हैं।
सुग्रीव ने इस बात की जानकारी हनुमान जी को दी और कहा कि मित्र, आप स्वयं वन में जाकर पूछताछ करें कि ये दोनों पुरुष कौन हैं, कहां से आए हैं और इनका वन में आने का उद्देश्य क्या है। मित्र की परेशानी को समझते हुए हनुमान ब्राह्मण का रूप धारण कर श्रीराम और लक्ष्मण के सामने पहुंच गए और उनसे पूछताछ करने लगे। हनुमान जी ने पूछा कि आप दोनों कौन हैं, कहां से आए हैं और आपको क्या चाहिए? पूछने पर श्रीराम बोले ने उन्हें आने और सीता माता के अपहरण की पूरी घटना बताई।
जैसे ही हनुमान जी को अहसास हुआ कि ये तो प्रभु राम हैं, वह फूले नहीं समाते है और इस बात की खुशी उनके चेहरे पर साफ झलक उठती है। सच्चाई जानने की देर ही थी कि हनुमान जी अपने असली रूप में वापस लौट आए और श्रीराम के चरण पकड़कर धरती पर गिर पड़े। यह पल ऐसा था मानो हनुमान जी को पूर्ण संसार मिल गया हो। उनके मुख से एक भी शब्द नहीं निकल रहा था, बस अपने प्रभु को पा लेने की जो खुशी उनके मुख पर दिखाई दे रही थी, उसका कोई मोल नहीं था।
Shree Ayodhya ji Shradhalu Seva Sansthan राम धाम दा पुरी सुहावन। लोक समस्त विदित अति पावन ।।