
फाल्गुन माह में कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि को माता सीता के पूजन का दिन है। इस दिन माता सीता धरती पर अवतरित हुईं थी। इस दिन को सीता अष्टमी या जानकी जयंती नाम से जाना जाता है। माता सीता एक आदर्श स्त्री का उदाहरण हैं। माता सीता को सौभाग्य की देवी मां लक्ष्मी के अवतार पद्या के रूप में माना जाता है।
मां सीता ने अपने जीवन में अनेक कष्ट उठाए। मान्यता है कि सीताजी के हरण के बाद उसी रात देवराज इंद्र, भगवान ब्रह्मा के कहने पर अशोक वाटिका में माता सीता के लिए खीर लेकर आए। माता सीता को खीर अर्पित की, जिसके खाने से माता सीता को जब तक लंका में रहीं भूख-प्यास नहीं लगी। मान्यता के अनुसार माता सीता को महज 18 साल की आयु में वनवास का कष्ट भोगना पड़ा। वन गमन के दौरान माता सीता भगवान श्रीराम की छाया शक्ति रहीं। यदि माता सीता अशोक वाटिका में वैराग्यणी के रूप में तप नहीं करतीं तो रावण को मार पाना असंभव था। श्रीरामचरित मानस के अनुसार वनवास के दौरान श्रीराम के पीछे-पीछे सीता चलती थीं। चलते समय वह इस बात का विशेष ध्यान रखती थीं कि भूल से भी उनका पैर श्रीराम के चरण चिह्नों पर न रख जाए।
Shree Ayodhya ji Shradhalu Seva Sansthan राम धाम दा पुरी सुहावन। लोक समस्त विदित अति पावन ।।