आप सभी को बता दें कि आज बलराम जयंती है. ऐसे में महाभारत युद्ध के समय कई लोग युद्ध में शामिल नहीं हुए थे लेकिन उन सभी में बलराम नहीं थे. जी हाँ, बलराम बहुत शक्तिशाली थे और उन्होंने कई युद्ध लड़े थे लेकिन उनके महाभारत युद्ध में शामिल नहीं होने के कई कारण थे और आज हम आपको उन्ही कारणों के बारे में बताने जा रहे हैं. सबसे पहले जानते हैं कौन थे बलराम.
बलराम कौन थे – कृष्ण को विष्णु तो बलराम को शेषनाग का अवतार माना जाता है और कहा जाता है कि जब कंस ने देवकी-वसुदेव के छ: पुत्रों को मार डाला, तब देवकी के गर्भ में भगवान बलराम पधारे. योगमाया ने उन्हें आकर्षित करके नन्द बाबा के यहां निवास कर रही श्री रोहिणीजी के गर्भ में पहुंचा दिया इस कारण उनका एक नाम संकर्षण पड़ा था. आपको बता दें कि बलराम जी का विवाह रेवती से हुआ था और बलवानों में श्रेष्ठ होने के कारण उन्हें बलभद्र भी कहते थे. इसी के साथ उनके नाम से मथुरा में दाऊजी का प्रसिद्ध मंदिर है. वहीं आपको पता होगा कि जगन्नाथ की रथयात्रा में इनका भी एक रथ होता है.
महाभारत के युद्ध में क्यों नहीं शामिल हुए? – एक कथा के अनुसार भगवान कृष्ण के बड़े भाई बलराम ने श्रीकृष्ण को कई बार समझाया कि हमें युद्ध में शामिल नहीं होना चाहिए, क्योंकि दुर्योधन और अर्जुन दोनों ही हमारे मित्र हैं. ऐसे धर्मसंकट के समय दोनों का ही पक्ष न लेना उचित होगा. लेकिन कृष्ण को किसी भी प्रकार की कोई दुविधा नहीं थी. उन्होंने इस समस्या का भी हल निकाल लिया था. उन्होंने दुर्योधन से ही कह दिया था कि तुम मुझे और मेरी सेना दोनों में से किसी एक का चयन कर लो. दुर्योधन ने कृष्ण की सेना का चयन किया. महाभारत में वर्णित है कि जिस समय युद्ध की तैयारियां हो रही थीं और एक दिन भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम, पांडवों की छावनी में अचानक पहुंचे.
दाऊ भैया को आता देख श्रीकृष्ण, युधिष्ठिर आदि बड़े प्रसन्न हुए और सभी ने उनका आदर किया. उसके बाद सभी को अभिवादन कर बलराम, धर्मराज के पास बैठ गए और फिर उन्होंने बड़े व्यथित मन से कहा कि ”कितनी बार मैंने कृष्ण को कहा कि हमारे लिए तो पांडव और कौरव दोनों ही एक समान हैं. दोनों को मूर्खता करने की सूझी है. इसमें हमें बीच में पड़ने की आवश्यकता नहीं, पर कृष्ण ने मेरी एक न मानी. कृष्ण को अर्जुन के प्रति स्नेह इतना ज्यादा है कि वे कौरवों के विपक्ष में हैं. अब जिस तरफ कृष्ण हों, उसके विपक्ष में कैसे जाऊं? भीम और दुर्योधन दोनों ने ही मुझसे गदा सीखी है. दोनों ही मेरे शिष्य हैं. दोनों पर मेरा एक जैसा स्नेह है. इन दोनों कुरुवंशियों को आपस में लड़ते देखकर मुझे अच्छा नहीं लगता अतः मैं तीर्थयात्रा पर जा रहा हूं.”
 Shree Ayodhya ji Shradhalu Seva Sansthan राम धाम दा पुरी सुहावन। लोक समस्त विदित अति पावन ।।
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