आप सभी को बता दें कि आज नरक चौदस है. ऐसे में पुराणों में नरक, नरकासुर और नरक चतुर्दशी, नरक पूर्णिमा का वर्णन मिलता है और नरकस्था अथवा नरक नदी वैतरणी को कहते हैं. इसी के साथ कहते हैं नरक चतुर्दशी के दिन तेल से मालिश कर स्नान करना चाहिए और इसी तिथि को यम का तर्पण किया जाता है. अब आज हम आपको बताने जा रहे हैं श्रीमद्भागवत और मनुस्मृति के अनुसार नरकों के नाम और वायु पुराण और विष्णु पुराण के नरककुंडों के नाम जहाँ पाप करने वाले लोगों को भेजा जाता है.
श्रीमद्भागवत और मनुस्मृति के अनुसार नरकों के नाम- 1.तामिस्त्र, 2.अंधसिस्त्र, 3.रौवर, 4, महारौवर, 5.कुम्भीपाक, 6.कालसूत्र, 7.आसिपंवन, 8.सकूरमुख, 9.अंधकूप, 10.मिभोजन, 11.संदेश, 12.तप्तसूर्मि, 13.वज्रकंटकशल्मली, 14.वैतरणी, 15.पुयोद, 16.प्राणारोध, 17.विशसन, 18.लालभक्ष, 19.सारमेयादन, 20.अवीचि, और 21.अय:पान, इसके अलावा…. 22.क्षरकर्दम, 23.रक्षोगणभोजन, 24.शूलप्रोत, 25.दंदशूक, 26.अवनिरोधन, 27.पर्यावर्तन और 28.सूचीमुख ये सात (22 से 28) मिलाकर कुल 28 तरह के नरक माने गए हैं जो सभी धरती पर ही बताए जाते हैं. वहीं कुछ पुराणों में इनकी संख्या 36 तक बताई गई है.
वायु पुराण और विष्णु पुराण में नरककुंडों के नाम- वसाकुंड, तप्तकुंड, सर्पकुंड और चक्रकुंड आदि. इन नरककुंडों की संख्या 86 है. नमें से सात नरक पृथ्वी के नीचे हैं और बाकी लोक के परे माने गए हैं. उनके नाम हैं- रौरव, शीतस्तप, कालसूत्र, अप्रतिष्ठ, अवीचि, लोकपृष्ठ और अविधेय हैं. लेकिन नरकों की संख्या पचपन करोड़ है, उनमें रौरव से लेकर श्वभोजन तक इक्कीस प्रधान माने गए हैं. उनके नाम इस प्रकार हैं- रौरव, शूकर, रौघ, ताल, विशसन, महाज्वाल, तप्तकुम्भ, लवण, विमोहक, रूधिरान्ध, वैतरणी, कृमिश, कृमिभोजन, असिपत्रवन,कृष्ण, भयंकर, लालभक्ष, पापमय, पूयमह, वहिज्वाल, अधःशिरा, संदर्श, कालसूत्र, तमोमय-अविचि, श्वभोजन और प्रतिभाशून्य अपर अवीचि तथा ऐसे ही और भी भयंकर नर्क हैं जहाँ पापियों को भेजते हैं.