ऐसे करें मंगल देव का पूजन

मंगलवार भगवान मंगल का वार। मंगल अर्थात् साक्षात् श्री शिव। कहा जाता है कि मंगल की उत्पत्ति धरती से ही हुई है। इसलिए मंगल को भूमि पुत्र भी कहा जाता है। मंगल के ही समान एक और स्वरूप में मंगलवार के दिन पूजन किया जाता है वह है अंगारेश्वर। ये अंगारेश्वर भगवान शिव के पसीने से ही उत्पन्न हुए थे। इन्हें लोहितांग भी कहा गया है। इन्हें शांत करने के लिए सभी को भगवान शिव से प्रार्थना करनी पड़ी थी। मामले में कहा गया कि सुबह जल्द उठकर स्नान से निवृत्त हो जाऐं और अपने परिवार के साथ मंगल देव का ध्यान और पूजन करें। भगवान को उनके इक्कीस नामों के साथ पूजन करें।

भगवान मंगलदेव के ये इक्कीस नाम निम्न हैं – 

मंगल, भूमिपुत्र, ऋणहर्ता, धनप्रदा, स्थिरासन, महाकाय, सर्वकामार्थसाधक, लोहित, लोहिताक्ष, सामगानंकृपाकर, धरात्मज, कुज, भूमिजा, भूमिनंदन, अंगारक, भौम, यम, सर्वरोगहारक, वृष्टिकर्ता, पापहर्ता, सर्वकाम फलदाता जैसे नामों का मनन कर उनका पूजन करें तो बेहतर होगा। भगवान को इक्कीस लड्डुओं का भोग लगाकर वेत के ज्ञाता सुपात्र ब्राह्मण को दिया जा सकता है। केवल एक बार रात्रि में भोजन किया जा सकता है। यही नहीं व्रत पूरा होने पर अपनी इच्छा की पूर्ति के लिए मंगलवार के व्रत का उद्यापन किया जा सकता है। उद्यापन के अंत में करीब 21 ब्रह्मणों को भोजन करवाने का विधान होता है। इस दौरान

धरणी गर्भ संभूतम्, विद्युत कांति समप्रभम्।
कुमारं शक्ति हस्तम् च मंगलम् प्रणमाम्यहम्।।

या  उं कुजाय नमः   मंत्र का जाप किया जा सकता है।

यदि स्वाति नक्षत्र हो तो उस दिन स्नान से निवृत्त होकर पूजा करें। मंगलयंत्र का निर्माण किया जा सकता है। मंगल देव की मूर्ति बनाकर उनका पूजन किया जा सकता है। भगवान को लालवस्त्र धारण करवाया जा सकता है। यही नहीं भगवान की पूजा – अर्चना की जा सकती है। षट्गंध, धूप, फूल, लालचंदन, दीपक, लाल गंध आदि से भगवान का पूजन करें। यदि मंगलयंत्र का पूजन किया जा सके तो जरूर कर सकते हैं। इस तरह के पूजन के बाद पूजन करने वाले की हर कामना पूर्ण होती है। अखंड सौभाग्य, पुत्र, पति का सुख, आयु की प्राप्ति, आरोग्यता, भूमि की प्राप्ति आदि भी इस तरह के पूजन से होती है।

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