आंवला नवमी पर जरूर सुने यह कथा वरना नहीं पूरा होगा व्रत

. ऐसे में इसे कार्तिक महीने की शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है और ऐसे में इस नवमी को अक्षय नवमी भी कहते है. आपको बता दें कि आंवला नवमी के दिन महिलाएं आंवला के पेड़ के नीचे बैठकर संतान की प्राप्ति व उसकी रक्षा के लिए पूजा करती हैं. इसी के साथ इस दिन एक कथा है जो जरूर सुननी चाहिए और आज हम आपको वो कथा बताने जा रहे हैं. आइए जानते हैं.आंवला नवमी पर जरूर सुने यह कथा वरना नहीं पूरा होगा व्रत

कथा – काशी नगर में एक निःसंतान धर्मात्मा वैश्य रहता था. एक दिन वैश्य की पत्नी से एक पड़ोसन बोली यदि तुम किसी दूसरी स्त्री के लड़के की बलि भैरवजी को चढ़ा दो तो तुम्हें पुत्र की प्राप्ति होगी. इस बात का पता वैश्य को चला तो उसने इसे अस्वीकार कर दिया . लेकिन उसकी पत्नी नहीं मानी. एक दिन उसने एक कन्या को कुएं में गिराकर भैरव जी को उसकी बलि दे दी, इस हत्या का परिणाम विपरीत हुआ. वैश्य की पत्नी के शरीर में कोढ़ हो गया और लड़की की आत्मा उसे परेशान करने लगी. वैश्य के पूछने पर उसने पति को सारी बातें बता दी. वैश्य ने पत्नी से कहा ब्राह्मण वध,बाल वध व गौ हत्या पाप है, ऐसा करने वालों के लिए इस धरती में कोई जगह नहीं है.

वैश्य की पत्नी अपने किये पर शर्मसार होने लगी, तब वैश्य ने उससे कहा कि तुम गंगाजी की शरण में जाकर भगवान का भजन करो व गंगा स्नान करो तभी तुम्हें इस रोग से मुक्ति मिल पाएगी. वैश्य की पत्नी गंगाजी की शरण में जाकर भगवान का भजन करने लगी, गंगाजी ने उसे कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को आंवले के पेड़ की पूजा करने की सलाह दी थी. गंगाजी की सलाह पर महिला ने इस तिथि पर आंवले के पेड़ की पूजा करके आंवला खाया था, जिससे वह रोगमुक्त हो गई थी. आंवले के पेड़ की पूजन व वृत के कारण ही महिला को कुछ दिनों बाद संतान की प्राप्ति हुई. तब से ही हिंदू धर्म में इस वृत का प्रचलन बढ़ा और परंपरा शुरू हो गई.

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