इस वजह से गणेशजी को नहीं मिला था विष्णु और लक्ष्‍मी जी के विवाह का निमंत्रण

आप सभी जानते ही हैं कि आज बुधावार हैं और आज का दिन गणेश जी को अत्यंत प्रिय माना जाता है. वैसे इन दिनों तो सभी दिन उन्ही को समर्पित है क्योंकि गणेश चतुर्थी चल रही है. ऐसे में बुधवार के दिन उनकी पूजा का विशेष विधान है. कहा जाता है गणेश चतुर्थी के पावन त्यौहार के बाद से ही आने वाले 10 दिनों तक गणेश जी की पूजा की जाती हैं इस कारण से आज हम आपको बताने जा रहे हैं गणेश जी से जुड़ी रोचक पौराणिक कथा, जिसमे यह बताया गया है कि जब भगवान विष्णु ने अपने विवाह में गणेश जी को नहीं बुलाया था तो क्या हुआ था.

पौराणिक कथा – एक समय की बात है कि विष्णु भगवान का विवाह लक्ष्‍मीजी के साथ निश्चित हो गया. विवाह की तैयारी होने लगी. सभी देवताओं को निमंत्रण भेजे गए, परंतु गणेशजी को निमंत्रण नहीं दिया, कारण जो भी रहा हो. अब भगवान विष्णु की बारात जाने का समय आ गया. सभी देवता अपनी पत्नियों के साथ विवाह समारोह में आए. उन सबने देखा कि गणेशजी कहीं दिखाई नहीं दे रहे हैं. तब वे आपस में चर्चा करने लगे कि क्या गणेशजी को नहीं न्योता है? या स्वयं गणेशजी ही नहीं आए हैं? सभी को इस बात पर आश्चर्य होने लगा. तभी सबने विचार किया कि विष्णु भगवान से ही इसका कारण पूछा जाए.

विष्णु भगवान से पूछने पर उन्होंने कहा कि हमने गणेशजी के पिता भोलेनाथ महादेव को न्योता भेजा है. यदि गणेशजी अपने पिता के साथ आना चाहते तो आ जाते, अलग से न्योता देने की कोई आवश्यकता भी नहीं थीं. दूसरी बात यह है कि उनको सवा मन मूंग, सवा मन चावल, सवा मन घी और सवा मन लड्डू का भोजन दिनभर में चाहिए. यदि गणेशजी नहीं आएंगे तो कोई बात नहीं. दूसरे के घर जाकर इतना सारा खाना-पीना अच्छा भी नहीं लगता. इतनी वार्ता कर ही रहे थे कि किसी एक ने सुझाव दिया- यदि गणेशजी आ भी जाएं तो उनको द्वारपाल बनाकर बैठा देंगे कि आप घर का ध्यान रखना.

आप तो चूहे पर बैठकर धीरे-धीरे चलोगे तो बारात से बहुत पीछे रह जाओगे. यह सुझाव भी सबको पसंद आ गया, तो विष्णु भगवान ने भी अपनी सहमति दे दी. होना क्या था कि इतने में गणेशजी वहां आ पहुंचे और उन्हें समझा-बुझाकर घर की रखवाली करने बैठा दिया. बारात चल दी, तब नारदजी ने देखा कि गणेशजी तो दरवाजे पर ही बैठे हुए हैं, तो वे गणेशजी के पास गए और रुकने का कारण पूछा. गणेशजी कहने लगे कि विष्णु भगवान ने मेरा बहुत अपमान किया है. नारदजी ने कहा कि आप अपनी मूषक सेना को आगे भेज दें, तो वह रास्ता खोद देगी जिससे उनके वाहन धरती में धंस जाएंगे, तब आपको सम्मानपूर्वक बुलाना पड़ेगा.

अब तो गणेशजी ने अपनी मूषक सेना जल्दी से आगे भेज दी और सेना ने जमीन पोली कर दी. जब बारात वहां से निकली तो रथों के पहिए धरती में धंस गए. लाख कोशिश करें, परंतु पहिए नहीं निकले. सभी ने अपने-अपने उपाय किए, परंतु पहिए तो नहीं निकले, बल्कि जगह-जगह से टूट गए. किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि अब क्या किया जाए. तब तो नारदजी ने कहा- आप लोगों ने गणेशजी का अपमान करके अच्छा नहीं किया. यदि उन्हें मनाकर लाया जाए तो आपका कार्य सिद्ध हो सकता है और यह संकट टल सकता है. शंकर भगवान ने अपने दूत नंदी को भेजा और वे गणेशजी को लेकर आए.

गणेशजी का आदर-सम्मान के साथ पूजन किया, तब कहीं रथ के पहिए निकले. अब रथ के पहिए निकल को गए, परंतु वे टूट-फूट गए, तो उन्हें सुधारे कौन? पास के खेत में खाती काम कर रहा था, उसे बुलाया गया. खाती अपना कार्य करने के पहले ‘श्री गणेशाय नम:’ कहकर गणेशजी की वंदना मन ही मन करने लगा. देखते ही देखते खाती ने सभी पहियों को ठीक कर दिया. तब खाती कहने लगा कि हे देवताओं! आपने सर्वप्रथम गणेशजी को नहीं मनाया होगा और न ही उनकी पूजन की होगी इसीलिए तो आपके साथ यह संकट आया है. हम तो मूरख अज्ञानी हैं, फिर भी पहले गणेशजी को पूजते हैं, उनका ध्यान करते हैं.

आप लोग तो देवतागण हैं, फिर भी आप गणेशजी को कैसे भूल गए? अब आप लोग भगवान श्री गणेशजी की जय बोलकर जाएं, तो आपके सब काम बन जाएंगे और कोई संकट भी नहीं आएगा. ऐसा कहते हुए बारात वहां से चल दी और विष्णु भगवान का लक्ष्मीजी के साथ विवाह संपन्न कराके सभी सकुशल घर लौट आए. हे गणेशजी महाराज! आपने विष्णु को जैसो कारज सारियो, ऐसो कारज सबको सिद्ध करजो. बोलो गजानन भगवान की जय.

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