यदि मनुष्य ने सत्य का दामन छोड़ दिया, तो वह खुद ही अपना अंत कर लेगा। सच्चाई जीवन की खास जरूरत है। आप कभी नहीं चाहते हैं कि कोई आपसे झूठ बोले, भले ही आपने कभी सच न बोला हो।

हरिश्चंद्र, सत्यकाम, जाबालि और गांधी जैसी निष्ठा न हो, तो भी सचाई के पालन में इतना मजबूत तो होना ही चाहिए कि अपने से किसी अन्य का अहित न हो। शून्य आकाश में, अनंत अंतरिक्ष के नक्षत्रों का प्रकाश किसी बिंदु पर टकराता है।
सच्चाई ऐसी स्थिति है, जहां दुनिया भर के अहम टकराते हैं। कीचड़ में फंसा बीज खुद को कीचड़ से अधिक नहीं सोच सकता, लेकिन जब वही अंकुरित और पल्लवित होकर स्वयं को चेतना के दायरे में समेट लेता है, तो न सिर्फ उस कीचड़ से ही बचता है, वरन उस कीचड़ में फंसी और फैली विभूतियों का अपने लिए अर्जन करने लगता है। निंदा के स्थान पर उसमें जन्मे कमल की तारीफ होने लगती है।
ऐसी स्थिति में यथार्थ को समझ पाना कठिन हो जाता है, पर कोई सच्चाई का आश्रय लेता है, तो कमल के समान वह विश्व के यथार्थ को देख लेता है। भली प्रकार समझा हुआ यह सत्य ही स्वर्ग और बंधन मुक्ति का आधार बनता है।
सत्य केवल संभाषण तक सीमित नहीं, उसका क्षेत्र बड़ा व्यापक और विशाल है। व्यवहार में सच्चाई हो, पर यह ध्यान रहे कि सच में अप्रियता न हो। प्रत्येक क्षेत्र में बरती गई ईमानदारी ही सार्वभौम सत्य की अनुभूति करा सकती है। मसलन, गांधी जी ने सत्य को अपना जीवन मंत्र बनाया, कुछ प्रतिज्ञाएं की, जैसे- अहिंसा व्रत का पालन करूंगा।
गरीबों की सेवा करते समय खुद भी निर्धन बनकर रहूंगा। दोनों प्रतिज्ञाएं कैसी चल रही हैं, यह परखते भी रहें और कभी कोई असावधानी या भूल हो जाती, तो उसका निराकरण भी करें। सारी दुनिया आज भी गांधी को नमन करती है। यह नमन गांधी को नहीं, उनकी निष्ठा को है। सत्य का एक भी कण जब तक जिंदा है, पृथ्वी कायम है।
यदि मनुष्य ने सत्य का पल्ला छोड़ दिया, तो वह खुद ही अपना अंत कर लेगा। शास्त्रों और ऋषियों ने सच्चाई को धर्म और अध्यात्म का आधार माना है। कहा है कि ‘सत्यमेव जयते नानृतम’ अर्थात सत्य ही जीतता है, असत्य नहीं। सत्य का वट वृक्ष धीरे-धीरे बढ़ता और फलता-फूलता है।
जब परिपुष्ट हो जाता है, तो सैकड़ों-हजारों वर्षों तक चलता है। उसकी जड़ें नीचे जमीन में भी चलती हैं और ऊपर शाखाओं से भी निकलकर नीचे आती हैं। दूसरे छोटे पेड़-पौधे प्रकृति के प्रवाह को देर तक नहीं सह पाते और जल्द ही अपना अस्तित्व खो बैठते हैं। उक्ति है कि सत्य में हजार हाथियों के बराबर बल होता है। अध्यात्म की भाषा में सत्य को परमात्मा का स्वरूप माना गया है।
Shree Ayodhya ji Shradhalu Seva Sansthan राम धाम दा पुरी सुहावन। लोक समस्त विदित अति पावन ।।