यमराज से भी नहीं डरा ये बालक, पूछे जीवन-मृत्यु के 3 रहस्य

yamraj-555ef8f70890f_lइतिहास में उद्धालक नामक प्रसिद्ध ऋषि हुए हैं। एक बार उन्होंने विश्वजीत नामक यज्ञ किया। यज्ञ के अनुष्ठान में उन्होंने ऋषियों-महात्माओं को अपना समस्त धन दान कर दिया। जब धन समाप्त हो गया तो उन्होंने अपनी समस्त गौ दान कर दीं।

उनका कोष रिक्त हो चुका था। तब उनके पुत्र नचिकेता बोले, पिताजी, मुझे भी आप अपना धन समझिए और मुझे दान कर अपना दानव्रत पूर्ण कीजिए। आप मुझे किसे देंगे?

परंतु उद्धालक ने कोई जवाब नहीं दिया। नचिकेता ने दोबारा उनसे सवाल किया लेकिन उद्धालक ने इस बात को गंभीरता से नहीं लिया। जब नचिकेता ने तीसरी बार ये सवाल किया तो उद्धालक बोले, मैं तुम्हें यम को दान करता हूं।

नचिकेता तनिक भी विचलित नहीं हुए। बोले, जैसी आपकी इच्छा। अब आज्ञा दीजिए, मैं यम के पास जा रहा हूं।

ऋषि को दुख हुआ कि उन्होंने ऐसा क्यों कहा! परंतु नचिकेता अपने संकल्प पर अडिग थे। इसलिए उन्होंने आज्ञा दे दी। नचिकेता यम के द्वार पर पहुंच गए। यमराज भीतर नहीं थे। अतः नचिकेता तीन रातों तक उनके द्वार पर बिना भोजन-पानी के बैठे रहे।

आखिरकार उनकी यम से मुलाकात हुई। यमराज ने उन्हें 3 वरदान मांगने के लिए कहा। नचिकेता ने यम से पहला वरदान मांगा कि उनके पिता का क्रोध शांत हो जाए, क्योंकि ज्ञानी मनुष्य भी क्रोध के वशीभूत होकर अपना विवेक भूल जाते हैं।

दूसरे वरदान के तौर पर उन्होंने यम से स्वर्ग के साधनभूत अग्निज्ञान का रहस्य बताने की प्रार्थना की। तीसरे वरदान में नचिकेता ने आत्मतत्व का ज्ञान प्रदान करने की विनती की।

तीसरा वरदान देने से पूर्व यम भी झिझक रहे थे। जब उन्होंने नचिकेता का दृढ़ निश्चय, आत्मज्ञान के प्रति ललक और विवेक का अनुमान लगाया तो उन्होंने उनकी तीनों इच्छाएं पूरी कर दीं।

जब नचिकेता को आत्मज्ञान प्राप्त हो गया तो वे पुनः घर लौट आए। उस समय वृद्ध तपस्वियों ने भी उनका स्वागत किया। नचिकेता और यम का ये संवाद शास्त्रों में प्रसिद्ध है।

भारत में धु्रव, नचिकेता जैसे महान बालक पैदा हुए हैं। उनकी तपस्या से भगवान का सिंहासन भी डोल गया था। इससे सिद्ध होता है कि भगवान की भक्ति के लिए कोई आयु निश्चित नहीं होती। हर उम्र परमात्मा का स्मरण करने के लिए उत्तम है।

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