6 कारणों से छिन सकता है मनुष्य के जीवन का सुख-चैन, जानें इनके बारे में

आचार्य चाणक्‍य ने अपने नीति ग्रंथ में जीवन के कष्टों से निवारण पाने के लिए कई नीतियों का बखान किया है. उन्होंने एक श्लोक के माध्यम से उन 6 कारणों के बारे में बताया है जिससे मनुष्य के जीवन का सुख-चैन छिन जाता है. वो कभी सुखी नहीं रह पाता और अंदर ही अंदर जलता रहता है. आइए जानते हैं इन 6 कारणों के बारे में…

कुग्रामवासः कुलहीन सेवा कुभोजन क्रोधमुखी च भार्या।

पुत्रश्च मूर्खो विधवा च कन्या विनाग्निमेते प्रदहन्ति कायम्॥

> चाणक्य इस श्लोक में कहते हैं कि निवास स्थान अगर बदनाम हो तो वहां नहीं रहना चाहिए, क्योंकि वहां रहने वाले लोग बुरे होते हैं. ऐसी जगह व्यक्ति के रहने के लिहाज से सबसे खतरनाक होती है. यहां सिर्फ हानि होती है. इसका बुरा असर संतान के भविष्य पर भी पड़ता है.> चाणक्य के मुताबिक गलत कार्यों में लिप्त रहने वाले व्यक्ति की सेवा करना अधर्म माना जाता है. ऐसे व्यक्ति का साथ मनुष्य को बर्बाद कर देता है. इनके संगत में अच्छा व्यक्ति भी दुष्ट हो जाता है. इसलिए ऐसे लोगों की सेवा कभी नहीं करनी चाहिए.

> हानिकारक भोजन कभी ग्रहण नहीं करना चाहिए. भोजन करना जीवन के लिए जितना अनिवार्य है उतना ही जरूरी यह भी है कि आप कैसा भोजन कर रहे हैं. खराब भोजन से स्वास्थ्य खराब होगा और स्वास्थ्य् सही नहीं रहने पर व्यक्ति किसी भी काम को नहीं कर पाता है.

> पत्नी अच्छी हो तो जीवन सफल माना जाता है और उसका आचरण अगर खराब हो, वो द्वेष पालने वाली महिला हो तो व्यक्ति के लिए परेशानी बढ़ जाती है. ऐसे व्यक्ति अंदर ही अंदर जलते रहते हैं और हमेशा विवादों में ही रहते हैं.

> पुत्र अगर मूर्ख हो तो माता-पिता का जीवन कष्टमय हो जाता है. चाणक्य के मुताबिक मूर्ख पुत्र को त्याग देना चाहिए. वो कहते हैं कि गलत कार्यों में लिप्त रहने वाला मूर्ख पुत्र हमेशा परेशानी उत्पन्न करता है.

> चाणक्य के मुताबिक अगर व्यक्ति की बेटी विधवा हो जाए तो वो पिता दुखी हो जाता है.

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