मलमास हरी वैकुण्ठपति विष्णु का प्रिय पुरुषोत्तम मास भी कहलाता है: धर्म

जिस चंद्रमास में सूर्य संक्रांति नहीं पड़ती उसे ही अधिकमास या मलमास कहा गया है। जिस चन्द्रमास में दो संक्रांति पड़ती हो वह क्षयमास कहलाता है।

सामन्यतः यह अवसर 28 से 36 माह के मध्य एक बार आता है। ज्योतिषीय गणना के अनुसार सूर्य के सभी बारह राशियों के भ्रमण में जितना समय लगता है उसे सौरवर्ष कहा गया है जिसकी अवधि 365 दिन 6 घंटे और 11 सेकेण्ड की होती है।

इन्ही बारह राशियों का भ्रमण चंद्रमा प्रत्येक माह करते हैं जिसे चन्द्र मास कहा गया है। एक वर्ष में हर राशि का भ्रमण चंद्रमा 12 बार करते हैं जिसे चंद्र वर्ष कहा जाता है।

चंद्रमा का यह वर्ष 354 दिन और लगभग 09 घंटे का होता है। परिणामस्वरुप सूर्य और चन्द्र के भ्रमण काल में एक वर्ष में 10 दिन से भी अधिक का समय लगता है।

इस तरह सूर्य और चन्द्र के वर्ष का समीकरण ठीक करने के लिए अधिक मास का जन्म हुआ। लगभग तीन वर्ष में ये बचे हुए दिन 31 दिन से भी अधिक होकर अधिमास, मलमास या पुरुषोत्तम मास के रूप में जाने जाते हैं।

ब्रह्मसिद्दांत के अनुसार- ‘यस्मिन मासे न संक्रान्ति, संक्रान्ति द्वयमेव वा। मलमासः स विज्ञेयो मासे त्रिंशत्त्मे भवेत।। अर्थात जिस चन्द्रमास में संक्रांति न पड़ती हो उसे मलमास या पुरुषोत्तम मास कहते हैं।

इसवर्ष 18 सितंबर शुक्रवार से 16 अक्तूबर शुक्रवार तक की अवधि के मध्य सूर्य संक्रांति न पडने से आश्विन में अधिकमास होगा।

अधिकमास में सभी शुभ कार्य जैसे शादी-विवाह, मुंडन, गृहप्रवेश, यज्ञोपवीत संस्कार, देव प्रतिष्ठा और अष्टका श्राद्ध आदि कार्य वर्जित माने गये हैं। प्राचीन काल में काल गणना के समय से ही अधिक मास का तिरस्कार किया जाने लगा तथा शुभ कार्यों से इनको वंचित कर दिया गया।

जिससे क्षुब्ध होकर मलमास वैकुण्ठपति विष्णु के पास गये और दीन-हीन मन से करुणापति से बोले हे परमेश्वर ! मै अधिकमास हूँ, इसमें मेरा क्या दोष है। मै तो आप ही के विधान से बना हूँ फिर मुझे यज्ञ आदि जैसे मांगलिक कर्मो से क्यों वंचित किया जाता है।

मलमास उदास देख जगतगुरु श्रीविष्णु बोले कि हे ! मलमास तुम निराश मत हो मैं तुम्हे वरदान देता हूँ कि जो तुम्हारे इस मास में मेरा भजन-पूजन करेगा और मेरी अमृतमयी श्रीमद्भागवत महापुराण की कथा को सुनेगा या कहेगा उसे मेरा उत्तमलोक प्राप्त होगा, यहाँ तक कि जिस घर में यह महापुराण केवल मलमास की अवधि के मध्य तक ही रहेगा उस घर में दुख और दारिद्रय का प्रवेश कदापि नहीं होगा। इसी क्षण से मै अपना श्रेष्ट नाम ‘पुरुषोत्तम’ तुम्हें प्रदान करता हूँ। अब तुम पुरुषोत्तम मास नाम से भी जाने जाओगे। तुम्हारे इस मास के मध्य मेरी आराधना का फल अमोघ रहेगा।

श्री हरि ने कहा की हे पुरुषोत्तम तुम्हारे इस मास में जो प्राणी मेरे श्रद्धा-विश्वास के साथ मेरे सहस्त्र नाम का पाठ, पुरुष सूक्त का पाठ, वेद मंत्रों का श्रवण, गौ दान, भागवत महापुराण पुस्तक दान, अन्य पौराणिक ग्रंथो का दान, वस्त्र, अन्न और गुड़ का दान करेगा उसे दैहिक, दैविक और भौतिक तीनों तापों से मुक्ति मिल जायेगी और वो मेरे द्वारा दी गयी परम गति को प्राप्त होगा।

साधक को चाहिए कि इस मास के मध्य तामसिक भोजन और मांस मदिरा से परहेज करें  केवल मेरी कथा ही सभी कष्टों से मुक्ति दिलाने के लिए पर्याप्त रहेगी, तभी से मलमास को पुरुषोत्तम मास के रूप में भी जाना जाता है।

 

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