सावन महीने के 10 रहस्य जो व्रत करने से पूर्व जानना है आवश्यक

भगवान शिव का माह श्रावण माह प्रारंभ होने वाला है। अषाड़ माह के शुक्ल पक्ष की समाप्ति के पश्चात श्रावण माह का प्रारंभ होता है। अषाड़ माह से ही वर्षा ऋतु का प्रारंभ हो जाता है और इसी माह की शुक्ल एकादशी के दिन देव सो जाते हैं। देवशयनी एकादशी से ही चतुर्मास का प्रारंभ हो जाता है। आओ जानते हैं श्रावण माह के 10 रहस्य।
1. सत्संग का महत्व : श्रावण शब्द श्रवण से बना है जिसका अर्थ है सुनना। अर्थात सुनकर धर्म को समझना। इस माह में सत्संग का महत्व है। इस माह में पतझड़ से मुरझाई हुई प्रकृति पुनर्जन्म लेती है।
2. व्रतों का प्रारंभ : श्रावण माह से व्रत और साधना के चार माह अर्थात चातुर्मास प्रारंभ होते हैं। ये 4 माह हैं- श्रावण, भाद्रपद, आश्‍विन और कार्तिक। पौराणिक कथा के अनुसार देवी सती ने अपने दूसरे जन्म में शिव को प्राप्त करने हेतु युवावस्था में श्रावण महीने में निराहार रहकर कठोर व्रत किया और उन्हें प्रसन्न कर विवाह किया था। इसलिए यह माह विशेष है।
3. संपूर्ण माह व्रत रखते हैं : श्रावण माह में सिर्फ सावन सोमवार ही नहीं संपूर्ण माह ही व्रत रखना जाता है। जिस तरह गुड फ्राइडे के पहले ईसाइयों में 40 दिन के उपवास चलते हैं और जिस तरह इस्लाम में रमजान माह में रोजे (उपवास) रखे जाते हैं उसी तरह हिन्दू धर्म में श्रावण मास को पवित्र और व्रत रखने वाला माह माना गया है। पूरे श्रावण माह में निराहारी या फलाहारी रहने की हिदायत दी गई है। इस माह में शास्त्र अनुसार ही व्रतों का पालन करना चाहिए। मन से या मनमानों व्रतों से दूर रहना चाहिए। संपूर्ण माह नहीं रख सकते हैं तो सोमवार सहित कुछ खास दिनों व्रत का पालन अवश्य करें।
4. व्रत का नियम : श्रावण माह में दूध, शकर, दही, तेल, बैंगन, पत्तेदार सब्जियां, नमकीन या मसालेदार भोजन, मिठाई, सुपारी, मांस और मदिरा का सेवन नहीं किया जाता। इस दौरान बाल और नाखुन नहीं काटना चाहिए। श्रावण माह में यात्रा, सहवास, वार्ता, भोजन आदि त्यागकर नियमपूर्वक व्रत रखना चाहिए तो ही उसका फल मिलता है। दिन में फलाहार लेना और रात को सिर्फ पानी पीना चाहिए।
जिसकी शारीरिक स्थिति ठीक न हो व्रत करने से उत्तेजना बढ़े और व्रत रखने पर व्रत भंग होने की संभावना हो उसे व्रत नहीं करना चाहिए। रजस्वरा स्त्री, जरूरी यात्रा या युद्ध के हालात में भी व्रत नहीं रखना चाहिए इस व्रत को रखने के तीन कारण है पहला दैहिक, दूसरा मानसिक और तीसरा आत्मिक रूप से शुद्ध होकर पुर्नजीवन प्राप्त करना और आध्यात्मिक रूप से मजबूत होना। इससे काया निरोगी हो जाती है।
5. उपाकर्म करना : श्रावण माह में श्रावणी उपाकर्म करने का महत्व भी है। यह कर्म किसी आश्रम, जंगल या नदी के किनारे किसी संन्यासी की तरह रहकर संपूर्ण किया जाता है। श्रावणी उपाकर्म के 3 पक्ष हैं- प्रायश्चित संकल्प, संस्कार और स्वाध्याय। पूरे माह किसी नदी के किनारे किसी गुरु के सान्निध्य में रहकर श्रावणी उपाकर्म करना चाहिए।
6. इस माह के व्रत-त्योहार : इस माह में सोमवार, गणेश चतुर्थी, मंगला गौरी व्रत, मौना पंचमी, कामिका एकादशी, ऋषि पंचमी, 12वीं को हिंडोला व्रत, हरियाली अमावस्या, विनायक चतुर्थी, नाग पंचमी, पुत्रदा एकादशी, त्रयोदशी, वरा लक्ष्मी व्रत, नराली पूर्णिमा, श्रावणी पूर्णिमा, शिव चतुर्दशी और रक्षा बंधन आदि पवित्र दिन आते हैं।
7. तीन तरह के व्रत : पुराणों और शास्त्रों के अनुसार सोमवार के व्रत 3 तरह के होते हैं- सावन सोमवार, सोलह सोमवार और सोम प्रदोष। हालांकि महिलाओं के लिए सावन सोमवार की व्रत विधि का उल्लेख मिलता है। उन्हें उस विधि के अनुसार ही व्रत रखने की छूट है।
शिवपुराण के अनुसार जिस कामना से कोई इस मास के सोमवारों का व्रत करता है, उसकी वह कामना अवश्य एवं अतिशीघ्र पूरी हो जाती है। जिन्हें 16 सोमवार व्रत करने हैं, वे भी सावन के पहले सोमवार से व्रत करने की शुरुआत कर सकते हैं। इस मास में भगवान शिव की बेलपत्र से पूजा करना श्रेष्ठ एवं शुभ फलदायक है।
8. यदि संपूर्ण माह व्रत रखें तो क्या करना चाहिए?
पूर्ण श्रावण कर रहे हैं तो इस दौरान फर्श पर सोना और सूर्योदय से पहले उठना बहुत शुभ माना जाता है। उठने के बाद अच्छे से स्नान करना और अधिकतर समय मौन रहना चाहिए। दिन में फलाहार लेना और रात को सिर्फ पानी पीना। इस व्रत में दूध, शकर, दही, तेल, बैंगन, पत्तेदार सब्जियां, नमकीन या मसालेदार भोजन, मिठाई, सुपारी, मांस और मदिरा का सेवन नहीं किया जाता। श्रावण में पत्तेदार सब्जियां यथा पालक, साग इत्यादि का त्याग कर दिया जाता है। इस दौरान दाढ़ी नहीं बनाना चाहिए, बाल और नाखुन भी नहीं काटना चाहिए। इष्टदेव के मंत्रों का मौन जप करना चाहिए, उनका ध्यान करना चाहिए उनकी कथाएं सुननी चाहिए और उनकी पूजा करनी चाहिए।
9. इस तरह के व्रत रखना वर्जित : अधिकतर लोग दो समय खूब फरियाली खाकर उपवास करते हैं। कुछ लोग एक समय ही भोजन करते हैं। कुछ लोग तो अपने मन से ही नियम बना लेते हैं और फिर उपवास करते हैं। यह भी देखा गया है कुछ लोग चप्पल छोड़ देते हैं लेकिन गाली देना नहीं। जबकि व्रत में यात्रा, सहवास, वार्ता, भोजन आदि त्यागकर नियमपूर्वक व्रत रखना चाहिए तो ही उसका फल मिलता है। हालांकि उपवास में कई लोग साबूदाने की खिचड़ी, फलाहार या राजगिरे की रोटी और भिंडी की सब्जी खूब ठूसकर खा लेते हैं। इस तरह के उपवास से कैसे लाभ मिलेगा? उपवास या व्रत के शास्त्रों में उल्लेखित नियम का पालन करेंगे तभी तो लाभ मिलेगा।
10. शिव के जलाभिषे का फल : श्रावण मास को मासोत्तम मास कहा जाता है। श्रवण नक्षत्र तथा सोमवार से भगवान शिव शंकर का गहरा संबंध है। इसी माह में भगवान शिव और प्रकृति अनेक लीलाएं रचते हैं। कहते हैं कि जब समुद्र मंथन से निकले हलाहल विष को भगवान शंकर ने पीकर उसे कंठ में अवरुद्ध कर दिया तो उस तपन को शांत करने के लिए देवताओं ने उनका जलाभिषेक इसी माह में किया था। इसीलिए इस माह में शिवलिंग या ज्योतिर्लिंगों का दर्शन एवं जलाभिषेक करने से अश्वमेघ यज्ञ के समान फल प्राप्त करता है तथा शिवलोक को पाता है।
गलती से भी न करें सावन के माह में ये काम, इन कामों को करने से प्रसन्न होंगे भोले भंडारी
श्रावण माह में जरूर सुनना चाहिए ये दो प्रचलित पौराणिक कथाएं

Check Also

घर में घुसते ही नहीं पड़नी चाहिए इन चीजों पर नजर…

वास्तु शास्त्र को हिंदू धर्म में विशेष महत्व दिया गया है। मान्यताओं के अनुसार, यदि …