भगवान कृष्ण के बारे में यह कथा कुछ पौराणिक ग्रंथों में मिलती है। इसके अनुसार एक बार दुर्वासा ऋषि कृष्ण के पास पहुंचे और आज्ञा दी कि वे जब तक स्नान करके वापस लौटे, तब तक उनके लिए खीर का प्रसाद भोजन के रूप में तैयार रखें। भगवान ने ऐसा ही किया। ऋषि ने खीर खाई और जो थोड़ी सी बची, कृष्ण को आज्ञा दी कि वे इस बची खीर का अपने शरीर पर लेप कर लें। भगवान ने ऐसा ही किया। जब वे लेपन के बाद ऋषि के पास पहुंचे तो ऋषि ने कहा शरीर के जिस भाग पर तुमने मेरी झूठी खीर का लेप किया है, वह वज्र का हो गया है। केवल पैरों के तलवे ही शेष रहे हैं।
इसलिए जब भी तुम्हारी मृत्यु होगी, पैरों के तलवों पर ही प्रहार होगा। श्रीमद्भागवत पुराण के 11 वे स्कंध की कथा के अनुसार यदुवंश का नाश होने के बाद एक दिन भगवान प्रभास क्षेत्र में अकेले पैर पर पैर रखे पेड़ के तने से सट कर लेटे हुए थे। उनका लाल सुंदर तलवा एक बहेलिए को हिरण के मुंह के समान नजर आया। उसने बाण चलाया और भगवान के पैर के तलवे से खून की धार बह निकली। इस बाण पर लोहे के उसी मूसल का टुकड़ा लगा हुआ था। जिसे यदुवंशियों ने ऋषियों के शाप के बाद चूर कर समुद्र में बहा दिया था। इस तरह भगवान ने अपनी लीला को समेटा और अपने धाम चले गए।
Shree Ayodhya ji Shradhalu Seva Sansthan राम धाम दा पुरी सुहावन। लोक समस्त विदित अति पावन ।।