भाद्रपद माह में हरतालिका तीज, कजरी तीज, गणेश चतुर्थी और श्री कृष्ण जन्माष्टमी जैसे कई प्रमुख त्यौहार आते हैं. इसी माह में ऋषि पंचमी का त्यौहार भी आता है. इस दिन महिलाएं व्रत रखती है और ऋषियों का पूजन किया जाता है. भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को ऋषि पंचमी के रूप में मनाया जाता है. इस व्रत को काफी महत्वपूर्ण व्रतों में से एक माना जाता है. 
हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार, ऋषि पंचमी का यह विशेष अवसर या दिन मुख्य रूप से सप्तर्षि के रूप में प्रसिद्ध सात महान ऋषियों को समर्पित होता है. इस त्यौहार के ठीक पहले चतुर्थी को गणेश चतुर्थी और फिर इससे ठीक एक दिन पहले हरतालिका तीज का त्यौहार आने से इस दिन का महत्व और भी बढ़ जाता है. इस दिन विधिवत रूप से ऋषियों का पूजन किया जाता है. कथा के श्रवण के बाद व्रत रखा जाता है.
क्यों मनाया जाता है ऋषि पंचमी का त्यौहार ?
महान भारतीय सप्तऋषियों की याद में ऋषि पंचमी का त्यौहार मनाया जाता है. पंचमी नामक शब्द न केवल पांचवे दिन बल्कि ऋषियों का भी प्रतिनिधित्व करता है. सप्तऋषियों ने इस धरा से बुराई का ख़ात्मा करने के लिए अपने जीवन का भी त्याग कर दिया था. भारत में यह त्यौहार बहुत ही श्रद्धा के साथ सम्पन्न होता है. सप्तऋषियों को लेकर यह कथन भी प्रचलित है कि उन्होंने सदा ही मानव जीवन की सुख-समृद्धि के लिए ही काम किया. देवलोकगमन से पहले भी उन्होंने यहीं काम किया. अन्याय के ख़िलाफ़ उन्होंने काम किया. हिंदू धर्म की मान्यताओं और शास्त्रों में भी हमे इस बात का उल्लेख मिल जाएगा कि सभी ऋषि अपने ज्ञान और बुद्धि के बलबूते अपने शिष्यों को बहुत ही उचित ढंग से शिक्षित करते थे. इनसे प्रेरणा लेकर आसानी से कोई भी मानव दान, मानवता और ज्ञान के मार्ग पर सुचारू रूप से चल सकता है.
Shree Ayodhya ji Shradhalu Seva Sansthan राम धाम दा पुरी सुहावन। लोक समस्त विदित अति पावन ।।