महाभारत के युद्ध में अनेक वीर काल के मुंह में समा गए। कौरवों की सेना में पितामह भीष्म, द्रोणाचार्य और कर्ण जैसे महान धनुर्धर थे। फिर भी उनकी सेना पराजित हुई। कर्ण कुंती के पुत्र थे लेकिन उनके जीवन में परिस्थितियां ऐसी थीं कि उन्हें कौरवों का साथ देना पड़ा।
कर्ण की मृत्यु युद्धभूमि में अर्जुन के बाण से हुई थी लेकिन उनकी मृत्यु का यह सिर्फ एक पहलू है। कर्ण की मृत्यु का एक और कारण भी था।
यह घटना उन्हें परशुराम के आश्रम से निकालने के बाद की है। जब परशुराम को यह शक हुआ कि कर्ण क्षत्रिय हैं तो उन्होंने अपने इस शिष्य का आश्रम से निष्कासन कर दिया।
दुखी मन से कर्ण ने आश्रम छोड़ दिया। एक दिन वे वन में शब्दभेदी बाण चलाने का अभ्यास कर रहे थे। तभी उन्हें किसी जानवर की आवाज सुनाई दी।
उन्होंने सोचा, जरूर यह कोई जंगली जानवर है जो किसी हिरण या मनुष्य आदि को मार देगा। यह सोचकर कर्ण ने अपने अचूक निशाने से उस पशु पर बाण चला दिया। बाण सही निशाने पर लगा लेकिन इसी बीच कर्ण से एक गलती हो गई।
उन्होंने जिस पशु को जंगली जानवर समझकर बाण चलाया था वह एक बछड़ा था। उसका स्वामी एक ब्राह्मण था। बछड़ा मारा गया। ब्राह्मण ने कर्ण को शाप दे दिया कि एक दिन उसकी भी इसी तरह असहाय अवस्था में बाण लगने से मृत्यु होगी।
वास्तव में कर्ण को भी बछड़े की मौत का बहुत दुख था लेकिन अब वे कुछ नहीं कर सकते थे। इस घटना के काफी वर्षों बाद महाभारत का युद्ध हुआ और कर्ण की मृत्यु उस बछड़े की तरह असहाय अवस्था में हुई।
कर्ण की इस घटना से हमें सबक लेना चाहिए कि कोई भी फैसला लेने से पहले उसका अंजाम जरूर सोच लें। ऐसा कोई काम न करें जिससे किसी असहाय जीव को कष्ट पहुंचे।
Shree Ayodhya ji Shradhalu Seva Sansthan राम धाम दा पुरी सुहावन। लोक समस्त विदित अति पावन ।।