कथाः विष्णु जी ने शिव को क्यों अर्पित कर दिया था अपना नेत्र?

भगवान की कृपा का दूसरा नाम ही वरदान है। जिस पर उनकी कृपा होती है उसके जीवन में आने वाले शूल भी फूल बन जाते हैं। पुराणों में भगवान के वरदान से संबंधित अनेक कथाएं हैं जो एक भक्त का अपने भगवान पर भरोसा और मजबूत करती हैं।shiva-55a0a661b1f75_l (1)

सभी देवों में शिवजी सबसे शीघ्र प्रसन्न होने वाले, दयालु और वरदानी हैं। एक बार भगवान शिव की प्रसन्नता के लिए विष्णुजी ने भी तपस्या की और उन्हें अपना नेत्र तक शिव को भेंट करना पड़ा। पूरी कथा क्या थी? आप भी पढ़िए।

बहुत प्राचीन काल की बात है। सृष्टि में दैत्यों का आतंक बहुत बढ़ गया था। तब सभी देवताओं ने उनकी दुष्ट प्रवृत्तियों का अंत करने के लिए विष्णुजी से प्रार्थना की। विष्णुजी देवताओं की करुण पुकार सुनकर कैलाश पर्वत गए। वहां वे शिवजी को यह समस्या बताना चाहते थे।

शिव की प्रसन्नता के लिए विष्णुजी ने हजार नामों से उनकी स्तुति प्रारंभ की। वे हर नाम पर एक कमल शिव को प्रस्तुत करते रहे। इस बीच शिवजी ने विष्णुजी की परीक्षा के लिए एक पुष्प छिपा दिया। जब अंतिम नाम पर विष्णुजी ने पुष्प चढ़ाना चाहा तो उन्हें वह नहीं मिला।

shiva

पूजन संपूर्ण होना जरूरी था और एक पुष्प के कारण विष्णुजी पूजन को अधूरा नहीं छोड़ना चाहते थे। इसलिए उन्होंने अपना नेत्र शिवजी को अर्पित कर दिया। यह देखकर शिवजी तुरंत प्रकट हो गए और उनसे कहा, वर मांगिए।

विष्णुजी ने सत्य की रक्षा का वरदान मांगा जिसके लिए शिवजी ने उन्हें सुदर्शन चक्र भेंट कर दिया। इसी चक्र से विष्णुजी ने दैत्यों का संहार किया और सृष्टि में फिर से सत्य का प्रकाश हुआ।

इस कथा का भाव ये है कि जो सत्य, न्याय, धर्म और जगत के कल्याण के लिए महान त्याग करता है, भगवान भोलेनाथ उस पर कृपा जरूर करते हैं।

वनवास में यहां आए थे सीता और श्रीराम, आज भी बने हैं कदमों के निशान
अभागों का भाग्य बन जाता है इनके साथ से

Check Also

वरुथिनी एकादशी पर दुर्लभ इंद्र योग का हो रहा है निर्माण

इस दिन जगत के पालनहार भगवान विष्णु की पूजा-उपासना की जाती है। साथ ही मनोकामना …