खाटू श्याम धाम की महिमा दूर-दूर तक फैली हुई है। यह धाम राजस्थान के सीकर जिले में स्थित है। यह श्याम बाबा यानी महाभारत के प्रमुख पात्र में से एक बर्बरीक को समर्पित है, जिन्हें भगवान कृष्ण ने कलियुग में अपने नाम ‘श्याम’ से पूजे जाने का वरदान दिया था। खाटू श्याम जी की प्रतिमा का रंग बदलने का रहस्य भक्तों के बीच हमेशा चर्चा का विषय रहा है, तो आइए इसकी वजह जानते हैं कि आखिर ऐसा क्यों है?
रंग बदलने का रहस्य
खाटू श्याम की प्रतिमा का रंग बदलना किसी प्राकृतिक या अलौकिक घटना से नहीं, बल्कि मंदिर की परंपरा और शृंगार का हिस्सा है। दरअसल, श्याम बाबा का यह रंग परिवर्तन कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष के आधार पर होता है।
कृष्ण पक्ष
चली आ रहा परंपराओं के अनुसार, जब कृष्ण पक्ष आता है, तो खाटू श्याम की प्रतिमा को श्याम वर्ण यानी सांवले रंग के रूप में तैयाक किया जाता है। इस दौरान उन्हें चंदन और अन्य विशेष सामग्रियों से सजाया जाता है, जिस कारण प्रतिमा में पीले रंग की झलक देखने को मिलती है, जो बाबा के सांवले रूप को और भी दिव्य दिखाती है।
शुक्ल पक्ष
कहते हैं कि जब शुक्ल पक्ष आता है, तो बाबा श्याम को शालिग्राम रूप में तैयार किया जाता है। इससे उनके स्वरूप में काले रंग की झलक देखने को मिलती है। अमावस्या के दिन विभिन्न प्रकार के द्रव्यों से बाबा का अभिषेक किया जाता है, जिससे प्रतिमा अपने मूल स्वरूप में नजर आती है। यह काला रंग उनकी दिव्यता का प्रतीक है।
भक्तों के लिए है ये एक रहस्य
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, खाटू श्याम जी की प्रतिमा महीने में 23 दिन श्याम वर्ण (पीले) रूप में और 7 दिन शालिग्राम (काले) रूप में दर्शन देती है। यह रंग परिवर्तन भक्तों के लिए भले ही एक रहस्य हो, लेकिन यह मंदिर की सदियों पुरानी परंपरा का हिस्सा है। इस परंपरा के माध्यम से बाबा को अलग-अलग स्वरूपों में सजाया जाता है, जो उनकी लीलाओं को भी दिखाता है।