जानिए क्या हुआ था जब श्रीकृष्ण को तराजू में तौला गया था

भगवान श्रीकृष्‍ण से जुडी कई कथाये हैं जो आप सभी ने सुनी होंगी. वैसे आज हम आपको बताने जा रहे हैं उनसे जुडी वह कथा जिसमे श्रीकृष्ण को तराजू में तौला गया था लेकिन उनके चक्कर में खजाना खाली हो गया. आइए जानते हैं वह कथा.

कथा : कालिया नाग के दमन के बाद गोकुल में नंदबाबा ने अपने पुत्री श्रीकृष्ण और रोहिणी के पुत्र बलराम दोनों के तुला दान का आयोजन रखा. इस आयोजन में सभी ग्वाल और यादव बिरादरी के लोग आए थे. उस दौरान राधा और उनके पिता वृषभानु भी मौजूद थे. नंदबाबा के आसपास बलराम और श्रीकृष्ण एक साथ बैठे होते हैं. सभी समाज और बिरादरी के लोग एकत्रित होकर एक जगह बैठे रहते हैं. श्रीकृष्ण के पीछे राधा बैठी मुस्कुरा रही होती है. सामने यशोदा मैया और रोहिणी मैया बैठी रहती हैं और दूसरी ओर वृषभानुजी अपनी पत्नी के साथ बैठे रहते हैं. एक ओर पुरोहितजन यज्ञ और तुलादान की तैयारी कर रहे होते हैं. तभी एक ऋषि कहते हैं नंदरायजी अब श्रीकृष्ण को बुलाइये. भगवान श्रीकृष्ण को तराजू के एक पलड़े में बैठा दिया जाता है. दूसरे में हीरे जवाहरात रख दिए जाते हैं लेकिन श्रीकृष्ण के वजन से पलड़ा उनका ही भारी रहता है.

नंदबाबा ये देखकर हैरान रह जाते हैं. तब वे कहते हैं कि एक थैला और लाओ. तब मोतियों की एक थाल रख दी जाती है लेकिन फिर भी पलड़ा बराबर नहीं होता है. तब नंदरायजी मैया यशोदा की ओर देखने लगते हैं. फिर वे कहते हैं एक थैला और लाओ. राधा और श्रीकृष्ण मुस्कुराते रहते हैं. मोतियों से भरे उस दूसरे थैले से भी कुछ नहीं होता है तो यशोदा मैया, रोहिणी और नंदबाबा आश्चर्य से हैरान परेशान हो जाते हैं. पुरोहित भी ये देखकर हैरान रहते हैं कि कान्हा में इतना वजन कैसे? तब नंदबाबा कहते हैं और थैले लाओ. और लाए जाते हैं उनसे भी कांटा हिलता तक नहीं है. सभी थाल समाप्त हो जाते हैं तब यशोदा मैया उठकर एक एक करके अपने सारे गहने निकालकर रख देती हैं. उनके आसपास दाऊ और राधा भी खड़े हो जाते हैं.

फिर धीरे से दाऊ राधा के पास जाकर उन्हें प्रणाम करते हैं. राधा समझ जाती है. फिर राधा उन्हें अपने बालों में लगी वेणी के फूल तोड़कर दे देती हैं. दाऊ वे फूल लेकर तराजू के दूसरे पलड़े पर रख देते हैं. पलड़ा एकदम से झुककर नीचे जमीन से लग जाता है और श्रीकृष्ण ऊपर हो जाते हैं. सभी प्रसन्न होकर मुस्कुराने लगते हैं. तब नंदबाबा पूछते हैं ये क्या था, कैसा चमत्कार है ये? यह सुनकर यशोदा मैया राधा की ओर देखने लगती हैं. नंदबाबा फिर से पूछते हैं, दाऊ भैया ये क्या था? तब दाऊ भैया कहते हैं कि ये एक दिव्य प्रेम का उपहार था. दिव्य प्रेम का उपहार? तुम दोनों के कौतुक हमारी समझ में नहीं आते. यह कहकर नंदबाबा श्रीकृष्ण को तराजू से नीचे उतार लेते हैं.

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