जानिए आखिर क्यों रावण के पास थे दस सिर…

इस समय दूरदर्शन पर रामायण और महाभारत जैसे पौराणिक धारावाहिकों का पुनः प्रसारण शुरू हो गया है ऐसे में लोग रामायण को देखने और उसकी कहानिया सुनने में रूचि रखते हैं. तो आइए आज हम आपको बताते हैं कि क्या सचमुच रावण के दस सिर थे और उसके पीछे क्या कारण था. जी दरअसल कुछ विद्वान मानते हैं कि रावण के दस सिर नहीं थे किंतु वह दस सिर होने का भ्रम पैदा कर देता था इसी कारण लोग उसे दशानन कहते थे. इसी के साथ कई लोगों के अनुसार रावण छह दर्शन और चारों वेद का ज्ञाता था इसीलिए उसे दसकंठी भी कहा जाता था. अब आज हम आपको बताते हैं क्या है सच्चाई-

आप सभी को पहले तो यह बता दें कि दस सिर का अर्थ क्या है : आप सभी को बता दें कि कई जगह इस बात का उल्लेख है कि रावण के दस सिर दस बुराइयों के प्रतीक हैं. जिनमे काम, क्रोध, लोभ, मोह, द्वेष, घृणा, पक्षपात, अहंकार, व्यभिचार, धोखा ये सभी शामिल हैं.  रावण महर्षि विश्वा और कैकसी नामक राक्षसी के पुत्र थे और रावण को अपने पिता महर्षि विश्वा से वेद-शास्त्रों का ज्ञान मिला था और अपनी माता कैकसी से राक्षसी प्रवृति मिली थी. लोग रावण को आज भी बुराई के प्रतीक के रूप में जानते हैं.

ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के लिए किया तप: कहा जाता है रावण ने ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप किया था. अपनी तपस्या के दौरान, रावण ने ब्रह्मा को प्रसन्न करने के लिए 10 बार अपने सिर को काट दिया. हर बार जब वह अपने सिर को काटता था तो एक नया सिर प्रकट हो जाता था. इस प्रकार वह अपनी तपस्या जारी रखने में सक्षम हो गया. अंत में, ब्रह्मा, रावण की तपस्या से प्रसन्न हुए और 10 वें सिर कटने के बाद प्रकट हुए और उन्हें वरदान मांगने को कहा. इस पर रावण ने अमरता का वरदान मांगा लेकिन ब्रह्मा जी ने उन्हें अमरता का आकाशीय अमृत प्रदान किया. इसी वजह से प्रभु राम ने जब उनकी नाभि कम मारा तब जाकर रावण की मौत हुई.

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